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(बो.५६,भा.४०,स.ज.वृ.१२५) जो संगं तु मुइत्ता।
(स.ज.वृ.१२५) संगाम पुं [संग्राम] युद्ध,लड़ाई। सुहडो संगाम एहिं सव्वेहिं ।
(मो.२२) संघाद पुं [संघात] 1. समूह, समुदाय, संघ। (प्रव.जे.३७) संघादादो य भेदादो। (प्रव.जे.३७) 2.सहनन का पूरक कर्म, नामकर्म का एक भेद। संठाणा संघादा। (पंचा.१२६) संचअ/संचय ' [संचय] समूह,संग्रह। (स.७०, प्रव.जे.६४) तस्स
कम्मस्स संचओ होदि। (स.७०) संचिद वि [संचित] संगृहीत, एकत्रित, संकलित। कम्मं खवदि
संचिदं। (मो.३०) संछण्ण वि [संछन्न ढका हुआ, आच्छादित। (पंचा.६९) संजअ/संजद वि [संयत] साधु, मुनि, व्रती, संयमी। (स.३५८,प्रव.चा.४०, निय.१४४, द.२६,सू.२०, बो.१०, भा.१, मो.५२) जो पांच महाव्रतों से युक्त तथा तीन गुप्तियों से सहित है, वह संयत है। पंचमहब्बयजुत्तो तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होई। (सू.२०) संजम पुं संयम] व्रत की एकाग्रता, व्रत , विरति। (स.४०४, पंचा.१७०, प्रव.१४, निय.११३, द.९, सू.११, बो.१,चा.५,भा.९४, शी.६) ज्ञान ही सम्यग्दृष्टि और संयम है। णाणं सम्मादिहिँदु संजमं। (स.४०४) -गुण न [गुण] संयमगुण । (द.३०)तवेण चरिएण संजमगुणेण ज्ञान,दर्शन,तप और चारित्र
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