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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 287 विमम पुं [विभ्रम] अस्थिरता, अनध्यवसाय, अव्यक्तज्ञान, अतिसामान्यज्ञान। (निय.५१) संसयविमोहविभम। (निय.५१) विभंग पुं [विभङ्ग] मिथ्यात्वयुक्त अवधिज्ञान। (पंचा.४१) कुमदिसुदविभंगाणि । (पंचा.४१) विभ अक [विभ्] डरना, भयभीत होना। (पंचा.१२२) इच्छदि सुखं विभेदि दुक्खादो। (पंचा.१२२) विभत्त वि [विभक्त विभाग, भेद, बाँटा हुआ, विभाजित। (पंचा.४५, स.४) दो वि य मया विभत्ता। (पंचा.८७) विभत्ति स्त्री विभक्ति विभाग, भेद, व्याकरण में प्रयुक्त विभक्ति विशेष। (चा.३९) जीवाजीवविभत्ती। (चा.३९) विभाग पुं [विभाग] अंश, भेद। (निय.१७) विभाव पुं [विभाव] औपाधिक अवस्था,विकारी दशा रणरणारयतिरियसुरा पज्जाया ते विभावमिदि भणिदा। (निय.१५) -णाण न [ज्ञान] विभावज्ञान। विभावणाणं हवे दुविहं। (निय.११) -दिट्ठि स्त्री [दृष्टि] विभाव दृष्टि, मिथ्यादर्शन, विकारमयदृष्टि। (निय.१४) तिण्णि विभणिदं विभावदिट्ठित्ति। (निय.१४) विमल वि [विमल] विशुद्ध, पवित्र, निर्मल। (प्रव.५९, निय.१११, भा.७२, बो.३६) णाणमयविमलसीयलसलिलं। (भा.१२४) -गुण पुंन [गुण] निर्मलगुण, विशुद्धगुण। (निय.१११) भिण्णं भावेह विमलगुणणिलयं। (भा.१११) -दसण न [दर्शन] निर्मल सम्यक्त्व। (भा.१४४) तह विमलदंसणधरो। विमुंच सक [वि+मुच्] छोड़ना, परित्याग करना, बन्धनमुक्त For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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