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286 विदिसा स्त्री [विदिशा] विदिशा, दिशाओं के बीच के कोण की दिशाएँ। (पंचा.७३) विदिसावज्जं गर्दि जंति। -वज्ज वि [वर्ण्य] विदिशाओं को छोड़कर। (पंचा.७३) विदुस वि विद्वस्] विद्वान्, वेत्ता, बुद्धिमान, ज्ञानी। (स.१५६)
ववहारेण विदुसा पवटुंति। (स.१५६) विधाण/विहाण न [विधान] 1.शास्त्रोक्त नियम, रीति, अनुष्ठान । (प्रव.८२) तेण विधाणेण खविदकम्मंसा। (प्रव.८२) 2.प्रकार, भेद। विद्धि स्त्री [वृद्धि] वृद्धि, विकास, बढ़ोत्तरी। (प्रव.७३) देहादीणं
विद्धि। विपच्च सक [वि+पच्] पकना, उदय में आना। (स.४५) दुक्खं ति
विपच्चमाणस्स। विपच्चमाणस्स (व.कृ.ष.ए.स.४५) विष्पजोग पुं [विप्रयोग] वियोग,विरह,जुदापन। सजोगविप्पजोगं।
(द्वा.३६) विप्पमुक्क वि [विप्रमुक्त] विमुक्त, रहित। दो-दोसविप्पमुक्को।
(मो.४४) विप्पलय पुं विप्रलय] विनाश,क्षय,अभाव। (स.२०९) णिज्जदु
वा अहव जादु विप्पलयं। विष्फुर अक [वि+स्फुर] विकसना, देदीप्यमान होना, चमकना। (भा.१४४) फणमणिमाणिक्ककिरणविप्फुरिओ। (भा.१४४) विप्फुरंत (व.कृ.भा.१५५) विष्फुरिअ वि [विस्फुरित देदीप्यमान, चमकने वाला। (भा.१४४)
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