SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 280 वास पुंन [वर्ष] 1. वर्ष, साल। वाससहस्सकोडीहिं (द.५) 2. पुं [वास निवास, स्थान विशेष, रहने की जगह। (भा.४६) -ठाण पुंन [स्थान] निवास स्थान। सो ण वि वासठाणो। (भा.४६) वाहणपुंन [वाहन रथ आदि वाहन। (द्वा.३) वाहि पुं स्त्री [व्याधि] व्याधि,पीड़ा,कष्ट |जरवाहिदुक्खरहियं। (बो.३६) वाहिर वि [बाह्य] बाहर, बाह्य। (भा.७) -गंथचा वि बाह्यपरिग्रह का त्याग, बाह्य परिग्रह से रहित। (भा.४) -णिग्गंथ वि निर्ग्रन्थ] बाह्य निर्ग्रन्थ। (भा.७) । वि अ [अपि] अपि,भी,ही,औरभी,प्रतिपक्षता,पादपूर्ति अव्यय। (पंचा.४१,स.४,प्रव.चा.२४, निय.१०४, द.१३, सू.४, चा.१०, बो.२१, भा.९५, मो.९७, शी.६, लिं.१४) जह णाम को वि पुरिसो। (स.१७) विअ सक [विद्] जानना, कहना। (भा.२,स.३९०)गुणदोसाणं जिणा विंति। (भा.२) विआण सक [वि+ज्ञा] जानना, मालूम करना। (स.२९३) विआणओ अप्पणो सहावं च। विभाणिअ व विज्ञात] जाना हुआ, विदित, ज्ञात। (स.२९३) विउल वि [विपुल] प्रभूत, प्रचुर, विशाल। (बो.६१, भा.७५) चउदसपुव्वंगविउलवित्थरणं । (बो.६१) विउब्बिय वि वैक्रियिक वैक्रियिक शरीरी,विक्रिया ऋद्धिधारी, शरीर का एक भेद। (भा.१२९) इड्ढिमतुलं विउब्विय। For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy