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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 279 (मो.२७) वाय पुं वाज] शब्द, आवाज, वाद्यविशेष। वायं वाएदि लिंगरूवेण। (लिं.४) वायरण न [व्याकरण] व्याकरण, शास्त्र विशेष । (शी.१६) । वायाम पुं व्यायाम] कसरत, शारीरिक श्रम। (स.२३७) करेदि सत्थेहिं वायाम। (स.२३७) वार पुं वार] अवसर, बेला। वार एकम्मि य जम्मे। (शी.२२) वारण न वारण] निषेध, रोक, निवारण |सुहमसुहवारणं किच्चा। (निय.९५) वालण न [ज्वालन] जलाना, दग्ध करना। (भा.१०) खणणुत्तावणवालण। (भा.१०) वालण में व्यञ्जन का लोप हो गया है। वालुअ/वालुय स्त्री [बालुका] बालू, रेज, रज, धूली। (द.७) -वरण पुं [वरण] बालू का पुल, रेत का सेतु। कम्मं वालुयवरणं। (द.७) वावार पुं [व्यापार नियोजन, संलग्नता, प्रक्रिया। (प्रव.६४, निय.७५,भा.४५)वावारो णत्थि विसयत्थं। (प्रव.६४)-विष्पमुक्क वि [विप्रमुक्त] इन्द्रियों की प्रवृत्ति से सर्वथा रहित वावारविप्पमुक्का। (निय.७५) वावीस वि द्वाविंशति] बाईस, संख्याविशेष। (बो.४४, सू.१२) -परिसह/परीसह पुं [परीषह]पीड़ा,बाधा |जे वावीसपरीसहसहति । (सू. १२) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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