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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 281 (भा.१२९) विओय/वियोग पुं [वियोग] विरह, वियोग। (स.२१५, भा.१२) -काल पुं [काल] वियोग का समय। सुरणिलएसु सुरच्छरविओयकाले। (भा.१२) -बुदि स्त्री [बुद्धि] वियोगबुद्धि। (स.२१५) विओगबुद्धीए तस्स सो णिच्चं। विंट न [वृन्त] फल-पत्रादि का बन्धन। (स.१६८) जह ण फलं वज्झए विंटे। (स.१६८) विकध न [विकथ] विकथन, बुराकथन। (प्रव.चा.१५) णेच्छदि समणम्हि विकधम्हि । (प्रव.चा.१५) विकहा स्त्री [विकथा] विकथा, प्रमाद का एक भेद। (चा.३५, भा.१६) चउविह विकहासत्तो। (भा.१६) स्त्री कथा, राजकथा चोरकथा और भोजनकथाये चार विकथाएँ हैं। (निय.६७) विगडि स्त्री [विकृति विकार, विकृति, रागद्वेष आदि विकार। (निय.१२८) विगडिं जणेदि दु। विगद्र वि [विगत] रहित, नाश को प्राप्त। (प्रव.१४,१५) -आवरण पुंन [आवरण] आवरण रहित। (प्रव.१५) -राग पुं [राग] रागरहित। (प्रव.१४) संजमतवसंजुदो विगदरागो। (प्रव.१४) विगम पुं विगम] विनाश, व्यय। विगमुप्पादधुवत्तं । (पंचा.११) विग्गह पुं [विग्रह] 1. आकृति, आकार। 2. शरीर, देह। 3. मोड़, टेड़ा, वक्र। 4. अलग-अलग होना, टूट जाना, बिखर जाना। विग्ध पुंन [विघ्न] अन्तराय, आत्मशक्ति का घातक कर्म, कर्म का For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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