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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 253 २५३) -जीव पुं [जीव] अज्ञानी जीव। (चा.१७) बझंति मूढजीवा। -दिट्ठि स्त्री [दृष्टि] मूढदृष्टि,मन्द बुद्धि की दृष्टि। (मो.८)अज्झवसिदो मूढदिट्ठीओ। (मो.८)-मइ/मदि स्त्री [मति] ज्ञानरहित बुद्धि,मन्द बुद्धि,भ्रमित बुद्धिा (स.६४, २५९) एसो दे मूढमई। (स.२५९) मूल न [मूल] 1.जड़, वृक्ष के नीचे का भाग। (द.१०,११, भा.१०३, ११३) जह मूलम्मि विणढे। 2. आधार, नींव, स्त्रोत, उत्पत्ति स्थान। मूलविणट्ठा ण सिमंति। (द.१०) तह जिणदंसणमूलो। (द.११) 3. मूलगुण, व्रत विशेष। (प्रव.चा.९) -गुण पुं न [गुण] मूलगुण। (प्रव.चा.९,१४, मो.९८) -च्छेद वि [छेद] मूल का घात। (प्रव.चा.३०) मूलच्छेदं जधा ण हवदि। (प्रव.चा.३०) मेत्तअ वि [मात्रक मात्र, परिमाण, मर्यादा विशेष। (भा.३३) परमाणुपमाणमेत्तओ णिलओ। (भा.३३) मेरु पुं [मेरु] मेरु, सुमेरुपर्वत, पर्वत विशेष। (चा.२०) -मत्त न [मात्र] मेरुप्रमाण । (चा.२०) संसारिमेरुमत्ताणं। मेल सक [मेलय] मिलाना, मिश्रण करना। (पंचा.७) मेलंता विय णिच्चं । मेलंत (व.कृ.पंचा.७) मेहुण न [मैथुन] रतिक्रिया, संभोग। (भा.११२) -सण्णा स्त्री [संज्ञा] मैथुन संज्ञा। (भा.९८) मेहुणसण्णासत्तो। मोक्ख पुं [मोक्ष] मुक्ति, निर्वाण । (पंचा.१५३, स.१८, निय.१३६ द.२१, सू१०, चा.३९, बो.१९) जो संवर से युक्त हो कर्मो की For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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