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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 242 (मो.८९) मइलिय में शब्द विपर्यय हो गया है। मउण न [मौन] चुपचाप, एकाग्र। (मो.९७) मंगल वि [मङ्गल] सुखकारी,शुभ,कल्याणकारी। (भा.१२३) मंत पुंन [मन्त्र] जाप, जपने योग्य अक्षरपद्धति। (द्वा.८) मंद वि [मन्द] अल्प, मूर्ख, अज्ञानी। (स.४०, २८८) -तण वि [त्व] मंदपना, अज्ञानीपन। (स.४१) -बुद्धि स्त्री [बुद्धि] मन्दबुद्धि, अल्पबुद्धि। (स.९६) मंस पुंन [मांस] मांस, गोस्त । (प्रव.चा.२९) मंसुग पुंन [श्मश्रुक] दाड़ी-मूंछ। (प्रव.चा.५) मक्कड पुं [मर्कट] बन्दर, वानर, कपि। (भा.९०) मक्कण न [मत्कुण] खटमल । (पंचा.११५) मक्खिया स्त्री [मक्षिका] मक्खी। (पंचा.११६) उइंसमसयमक्खिय। मग्ग पुं [मार्ग] रास्ता, पथ,मार्ग। (पंचा.१०५, स.२३४, निय.२, मो.१९) -प्पभावण? वि [प्रभावनार्थ] मार्ग की प्रभावना के लिए। (पंचा.१७३)-फल पुं न [फल] मार्गफल, इष्ट-अनिष्टकृतकर्म का शुभ-अशुभफल। (निय.२) मम्गण/मग्गणा स्त्री [मार्गणा] विचारणा, पर्यालोचना, अन्वेषण। (स.५३, निय.४२, चा.११, सू.१, बो.३०) मच्छ पुं [मत्स्य] मछली। (पंचा.८५, भा.८८) मच्छर न [मात्सर्य] ईर्ष्या, द्वेष । (भा.६९) मच्छरिअ वि [मत्सरित] ईर्ष्यालु, द्वेषी। (द.४४) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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