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237 संसार समुद्र, संसारसागर। (भा.९.) -णासण न [नाशन] संसार नाश। (सू.३) -णिंदा स्त्री निंदा] संसार की निन्दा। (भा.१) -महण न[मथन] संसार का नाश । (भा.८२)-रुक्ख पुं [वृक्ष] ससाररूपी वृक्ष। (भा.१२१) -सायर पुं [सागर] संसारसागर। (पंचा.१७२, भा.२०) 2. उत्पत्ति, उत्पन्न। (प्रव.जे.८) ण भवो भंगविहीणो। 3. योनि, पर्याय। (मो.५३) भविअ/भविय वि [भव्य] 1. मुक्तिगामी, मोक्ष जाने योग्य। (पंचा.१६३, भा.४५) -जीव पुं [जीव] भव्य-जीव। (भा.१४८) 2. वि [भक्ति होता हुआ। (पंचा.१७२) । भव्व वि [भव्य मुक्तिगामी। (पंचा.३७, निय.११२, प्रव.६२) -जण पुं [जन] भव्य जन। (बो.५९) -जीव पुं [जीव भव्य जीव, निकट भविष्य में मुक्त होने वाला। (बो.२४,चा.१) -पुरिस पुं [पुरुष] भव्य पुरुष। (बो.५३) भा सक [भावय] चिंतन करना। (भा.१३, १४) भाऊण दुहं पत्तो।
(भा.१४)
भागि वि [भागिन्] भागीदार, हिस्सेदार। (प्रव.चा.५९) भायण पुंन [भाजन] पात्र,बर्तन। (भा.६५, ६९) भार पुं [भार] बोझा, भार वाली वस्तु।। भाव सक [भावय] गुणगान् करना, चिंतन करना, भावना करना। (निय.९१, भा.११५, मो.१०६) भावइ (व.प्र.ए.मो.१०६, भा.१६४) भावंति (व.प्र.ब.बो.५३) भावंतो (व.कृ.भा.६१) भावेह (वि आ.म.ब.निय.१११) भावेज्ज (वि. आ.द्वा.८७)
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