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238. भाविज्जहि (वि.आ./म.ए.भा.५५) भाविऊण (सं.कृ.भा.४३) भावि (वि. आ.म.ए.भा.९६) भाव पुं [भाव] 1. अभिप्राय, आशय, मानसिक विकार। (पंचा.१४८, स.९१, प्रव.८३, भा.६०, चा.४५) -कारण न कारण] भाव कारण, भाव का निमित्त । (पंचा.६०) -ठाण न स्थान] भावस्थान। (निय.३९) -णिमित्त न निमित्त भाव का हेतु। (पंचा.१४८) -तिविह वि [त्रिविध] तीन प्रकार के भाव। (भा.८०) -धम्म पुंन [धर्मन्] भावधर्म। (लिं.२) -पाहुड न [प्राभृत] भाव पाहुड,एक ग्रन्थ का नाम,भावों का उपहार। (भा.१,१६४) -मल पुं न [मल] भावरुपी मल,अन्तरङ्ग मैल (भा.७०) -रहिअ/रहिय वि [रहित] भाव रहित, परिणाम रहित। (भा.४, १०) -वज्जिअ वि वर्जित भाव विरहित। (भा.७४) -विण? वि [विनष्ट] भाव रहित, भावों से हीन। (लिं. १९, २०) -विमुत्त वि [विमुक्त] भावों से मुक्त। (भा.४३) -विरअ वि [विरत] भावों से विरत। (भा.४७) -बीअपुंन [बीज] भाव बीज। (भा.१४) -विसुद्ध वि [विशुद्ध] भाव विशुद्ध। (भा.३) -विहूण वि [विहीन] भाव विहीन। (भा.५) -समण/सवणपुं श्रमण भाव श्रमण, विशुद्ध आत्मा की ओर अग्रसर मुनि। पार्वति भावसमणा। (भा.१००) -सवणत्तण वि [श्रमणत्व] भाव श्रमणपना। (भा.६७) -सहिअ/सहिद/सहिय वि [सहित] भाव सहित। (भा.१२७, निय.७४) -सुद्ध वि [शुद्ध] भावों से शुद्ध। (चा.४५, भा.६०)
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