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236 भद्रबाहु, एक मुनि का नाम। (बो.६१) भम सक [भ्रम्] घूमना, परिभ्रमण करना, चक्कर लगाना। (स.२३६,प्रव.१२,भा.६८,सू.२१,शी.३६)भमइ/भमदि भमेइ (व.प्र.ए.प्रव.१२, स.३०१, सू.२१) भमंति (व.प्र.ब.द.४) भमिदव्व (वि.कृ.शी.२६) भमाडिज्जइ (प्रे.व.प्र.ए.स.३३४) भमर पुं [भ्रमर] भौरा, मधुकर। (पंचा.११६) भमिअ वि [भ्रमित घूमता हुआ, परिभ्रमण करता हुआ, भ्रमण
शील (भा.३०,१०३) भय न [भयं] डर, त्रास, भीति। (निय.१३२, भा.२५, द.१३) भयव/भयवअ ' [भगवन्] भगवान्। (स.२८, बो.६१) भयवंत पुं [भगवन्त्] भगवान्। (भा.१५६) भर सक [भृ] भरना, पालना। (भा.४२) भरह पुं [भरत] भरत क्षेत्र, आदिनाथ के प्रथम पुत्र का नाम।
(मो.७६) भरिय वि [भरित] भरा हुआ, रक्षित, पोषित। (भा.४२) भव अक [भू] होना। (प्रव.१२, स.३८४, भा.२९) भवदि (व.प्र.ए.प्रव.शे.१४) भविस्सदि (भवि.प्र.ए.प्रव..२०) भविस्सं (भवि.उ.ए.स.३८४) भवंतो (व.कृ.२९) भवीय (सं.कृ.प्रव.जे.५९) भव पुं [भव] 1. संसार, जगत्। (स.६१, निय.४७) -कोडि स्त्री [कोटि] करोड़ों भव । (सू.८) -गहण न [ग्रहण) 1. संसार ग्रहण 2. न [गहन] संसार रूपी वन। (मो.४७) -प्रणव पुं [आर्णव]
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