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परिस न [स्पर्श] स्पर्श, छूना। (चा.३६) परिसह/परीसह पुं परिषह] उपसर्ग, बाधा, व्यवधान। (भा.९४)
परिसहेहिंतो (पं.ब.भा.९५) परिहर सक [ परि+ह] त्याग करना, छोड़ना। परिहरंति (व.प्र.ब.) परिहरदिः (व.प्र.ए.मो.३६) परिहरत्तु (सं.कृ.निय.१२१) परिहर परिहरि (वि. आ.म.ए.भा.१३२,चा.१६) परिहार पुं [परिहार] त्याग, विरक्त। (निय.६६, चा.२४, मो.४२) -विसुद्धि वि [विशुद्धि] परिहारविशुद्धि, चारित्र का एक भेद (चा.भ.३) परिहीण [परिहीन] कम, हीन, रहित, निम्न। (निय.१४९,
शी.१८) सब्वे वि परिहीणा। (शी.१८) परीक्ख सक परि+ईक्ष्] परीक्षा करना। परीक्खऊण
(सं.कृ.निय.१५५) परूव सक [प्र+रूपय्] निरूपण करना, कथन करना, कहना। (पंचा.१२, स.३९) परूवंति (व.प्र.ब.पंचा.१२१, १५७) परूविंति (व.प्र.ब.पंचा.१२, स.३९) परूवेंति (व.प्र.ब.निय.२४, प्रव.३९) परूवणन प्ररूपण] निरूपण, कथन। (निय.४) परूविद. वि [प्ररूपित] प्रतिपादित, कथित, निरूपित।
(पंचा.५१,प्रव.जे.९६) परोक्ख न परोक्ष] 1. अप्रत्यक्ष, इन्द्रियादि साधनों के द्वारा होने वाले ज्ञान को परोक्ष कहा जाता है। (निय.१६८) - भूद वि [भूत
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