________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
215 परोक्षभूत, जो जीव इन्द्रियगोचर पदार्थ को ईहा, अवाय, धारणादि पूर्वक जानते हैं, वे पदार्थ उनके लिए परोक्षभूत हैं। (प्रव.४०) तेसिं परोक्खभूदं। 2. अतीत, सामने न होना। -दूसण न [दूषण] परोक्षदूषण। (लिं.१४) । परोध पुं [परोध] परोपरोधकरण, अचौर्य व्रत की भावना।
(चा.३४, निय.६५) परोवेक्खा स्त्री [परापेक्षा] दूसरे की अपेक्षा, दूसरे की परवाह,
पराधीन। (मो.९१) पलपिह वि प्रलयित] अतीतपर्याय, युगान्त लोप को प्राप्त।
(प्रव.३९) पलविद वि [प्रलवित प्रलापित, कथित, प्रतिपादित। (द्वा.९०) पलग्ग पुंन दि] फाटक, दरवाजा, द्वार। पलियंक न [पल्यङ्क] पल्याङ्कासन। (सि.भ.५) पवक्ख सक [प्र+वच्] बोलना, कहना। (निय.७६) पडिक्कमणादी
पवस्खामि । (निय.८२) पवक्खामि (भवि.उ.ए.) पवट्ट अक [प्र+वृत्] प्रवृत्ति करना, प्रवाहित होना। (मो.६६,द.७)
ववहारेण विदुसा पवटुंति। (स.१५६) पवड्ढ अक [प्र+वृध्] बढ़ना, वृद्धि को प्राप्त होना। (पंचा.११३)
पवटुंता (व.कृ.) पवण पुं [पवन] हवा, वायु। (भा.२१) -पह [पथिन्] वायुमार्ग, आकाशमार्ग। (भा.१५९) पुण्णिमइंदुन्च पवणपहे। - सहिद वि [सहित] हवा सहित। (शी.३४)
For Private and Personal Use Only