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पय पुंन [पद] स्थान, अधिकार, पदवी। (स.२०५) पयट्ट वि [प्रवृत्त] संयुक्त, लगा हुआ, तल्लीन, तत्पर। (चा.१६)
पयट्ट सुतवे संजमे भावे। पयड सक [प्र+कटय] प्रकट करना, व्यक्त करना। (भा.७३) पयडदि (व.प्र.ए.) पयडमि (व.उ.ए.भा.११९) पयडहि (वि. आ.म.ए.भा.९८) पयड वि [प्रकट] व्यक्त, खुला हुआ, स्पष्ट| (शी.३९) - त्थ वि
[अर्थ] प्रकटार्थ, स्पष्ट प्रयोजन। (भा.१६) पयडि स्त्री [प्रकृति] 1. स्वभाव, शील। ण मुयइ पयडि अभब्यो। (भा.१३७) 2. कर्मप्रकृत्ति। (पंचा.५५, स.३१२,३१३) देवा इदिणामसंजुदा पयडी। 3. पुद्गल प्रकृति। पयडीहिं पुग्गलमइहिं। (स.६६) 4. बन्ध का एक भेद, कर्मभेद। (निय.९८, पंचा.७३) य? वि [अर्थ] प्रकृति के निमित्त। (स.३१३) -सहावट्ठिअ वि [स्वभावस्थित] प्रकृति के स्वभाव में ठहरा हुआ। (स.३१६) पयडीए (च./ष.ए.स.३१६) पयडीओ (प्र.ब.स.६५) पयत वि [प्रयत] प्रयत्नशील, सतत् प्रयत्न करने वाला। (निय.६४) -परिणाम पुं [परिणाम] प्रयत्न, प्रमाद रहित (निय.६४) पयत्त पुं [प्रयत्न] चेष्टा, उद्यम, उद्योग। (स.१७, भा.८७, मो.९,
पयत्य पुंन [पदार्थ] अर्थ, पदार्थ, वस्तु। (निय.७४,भा.९७,द.१५) णव य पयत्थाई (भा.९७) पयत्थाई (द्वि. ब.) -देसय वि [देशक]
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