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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 206 पप्प वि [प्राप्त] मिला हुआ, पाया हुआ,प्राप्त। (शी.२५) पष्फोडिय वि [प्रस्फोटित] गिराया हुआ, उड़ाया हुआ, निर्झटित। (शी.३९) प्पफोडिय कम्मरया। पबल वि [प्रबल] बलिष्ट, प्रचण्ड, शक्तिशाली। (भा.१५५) पभट्ट वि [प्रभ्रष्ट] परिभ्रष्ट, अत्यन्तच्युत। (प्रव.चा.६७) पब्भस्स अक [प्र+भ्रश्] अलग होना, छूटना,टूटना। (पंचा.१५५) पभास सक [प्र+भास्] प्रकाशित करना, चमकना। पभासदि (पंचा.३३) पभुत्त सक [प्र+भुंज] भोग करना, ग्रहण करना। पभुत्तूण (सं.कृ.भा.१०२) पभेद पुंन [प्रभेद] प्रकार, विधान, भेद। (प्रव.जे.६०) पमत्त वि [पमत्त प्रमादी, प्रमादयुक्त। (स.६, प्रव.चा.९) पमदा स्त्री [प्रमदा] नारी, महिला। पमदापमादबहुलो त्ति णिद्दिवो। (प्रव.चा.ज.वृ.२४) पमाण न प्रमाण] 1.यथार्थज्ञान, जिससे वस्तुतत्त्व की सत्य जानकारी हो। (निय.३१,स.५,भा.३३) जदि दाएज्ज पमाणं । 2. सीमा, मर्यादा, प्रमाण । णाणं णेयप्पमाणमुद्दिटुं। (प्रव.२३) पमाद पुं [प्रमाद] आलस्य, प्रमाद, आम्रवों के कारणों में एक भेद। (पंचा.१३९) पमुत्त/पमोत्त सक [प्र+मुन्च्] छोड़ना, त्याग करना। (भा.९४) संजमघादं पमुत्तूण। अब्बंभं दसविहं पमोत्तूण। (भा.९८) पमुत्तूण पमोत्तूण (सं.कृ.) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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