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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 196 ध्रुवत्व, नित्यपना। (प्रव.जे.४) धूव पुं [धूप] धूप, सुगन्धित पदार्थ, देवपूजा के योग्य सुगन्धित पदार्थ। (नि.भ.अं.,नं.भ.अं.) धोद वि [धौत] धो देने वाला, नष्ट करने वाला। (प्रव.१) घोव्व वि [ध्रुव] नित्य, शाश्वत्। (प्रव.८) पइट्ठा स्त्री प्रतिष्ठा धारणा, स्थापना, प्रतिष्ठा मान,गरिमा, एक समिति का नाम । (निय.६५) पइण्ण न [प्रकीर्ण] प्रकीर्णक, आगम ग्रन्थ । (श्रु.भ.अं.) पईव पुं प्रदीप] दीपक, दिया। (भा.१२२) पउम न [पद्म] कमल, अरविन्द। (पंचा.३३) -रायरयण पुं न [रागरत्न] पद्मरागमणि। (पंचा.३३) -प्पह पुं प्रभ] पद्मप्रभ, छटवें तीर्थङ्कर का नाम। (ती.भ.३) पउर वि [प्रचुर] बहुत, अधिक, प्रचुर। (मो.९५) पएस पुं प्रदेश प्रदेश, स्थान। (भा.३६, ४७) पंच त्रि [पञ्चन्] पांच, संख्या विशेष। -आचार पुं [आचार] पंचाचार। दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तप आचार और वीर्याचार। (निय.७३)-इंदिय/एंदिय न [इन्द्रिय] पांच इन्द्रियां। स्पर्शन,रस,घ्राण,चक्षु और कर्ण। (बो.४३,२५,निय.७३, भा.२९) -चेल न [चेल] पांच वस्त्र, पांच प्रकार के वस्त्र। जे For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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