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प्रत्यय होते हैं। (हे. ई-इज्जौक्यस्य । ३/१६०) णवरं अ [केवल) केवल, किन्तु,सिर्फ। जाणइ णवरं तु
समयपडिबद्धो। (स.१४३) णवरि/णवरि अ [दे] केवल, मात्र, किन्तु। णवरि ववदेसं।
(स.१४४) अबंधगो जाणगो णवरि। (स.१६७) णवि अ दि] निषेधवाचक, अव्यय, विपरीतसूचक अव्यय,नहीं।
णवि सो जाणदि। (स.५०,२०१) णस/णस्स अक [नश्] नष्ट होना। लिंगं णसेदि लिंगीणं। (लिं.३)
ण णस्सदि ण जायदे अण्णो। (पंचा.१७) णह न [नख] नाखून। (भा.२०) णहु अ [न खलु] नहीं। (द.२७) णा सक [ज्ञा] जानना, समझना। (पंचा.१६२, स.१८, प्रव.२५, निय.१६,चा.४२) णादि (व.प्र.ए.पंचा.१६२,प्रव.२५)णाऊण (सं. कृ.भा.५५,चा.६,शी.३)णादूण णादूणं (सं.कृ.स.७२,३४) णायव्वो णादव्वो (वि.कृ.स.१२,२८५,बो. ४०) गाउं/णा, (हे.कृ.प्रव.४०,स.१४९,चा.४२,भा.८८) -णाग पुं नाग] सर्प। (स.ज.वृ.२१९) -फलि स्त्री [फलि] लता विशेष, नागफणी। (स.ज वृ.२१९) णागफलीए मूलं, णाइणि तीएण गब्भणाणेण । (स.ज.वृ.२१९) णाण न [ज्ञान] ज्ञान, बोध, आत्मा का निज गुण। (पंचा.१६४, स.२,प्रव.२,निय.३,चा.३) -आवरण न [आवरण] ज्ञानावरण, ज्ञान को आच्छादन करने वाला कर्म। जे पुग्गलदव्वाणं, परिणामा
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