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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 148 बद्धमबद्धं,जीवे एवं तु जाण णयपक्खं पक्खातिक्कंतो पुण भण्णदि जो सो समयसारो।।(स.१४२)-परिहीण वि [परिहीण नय रहित। (स.१८०) णयण पुंन[नयन] नेत्र,आंखावीरं विसालणयणं । (शी.१) -णीर [नीर] नेत्रों के आंसू। रुण्णाण णयणणीरं। (भा.१९) णयर न [नगर शहर, पुर, नगर| जयरम्मि वण्णिदे जह। (स.३० णयरम्म णयरे (स.ए.स.३०) पर पुं नर] मनुष्य, पुरुष। (पंचा.१६,स.२४२,प्रव.७२,निय.१५ भा.१) णरो (प्र.ए.स.२४२) णरस्स (च. ष.ए.द.३१) णरय पुं [नरक नरक, नारकी, जीवों का स्थान, नरक गति विशेष। (भा.४९,लिं.६) णव त्रि [नव] नौ, संख्या विशेष| णव जय पयत्थाई। (भा.९७) -रूणिहि वि [निधि] नौ निधियाँ। (द्वा.१०) -णोकसायवग्ग वि [नोकषायवर्ग] नौ-नोकषायवर्ग, नोकषायों का समूह। (भा.९१) हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। -त्य वि [अर्थ] नवार्थ, नौ पदार्थ। (पंचा.७२) जीव, अजीव,आसव,बंध,संवर,निर्जरा,मोक्ष,पुण्य और पाप। -पयत्य पुं [पदार्थ] नौ पदार्थ । (द.१९) -विहबंभ पुं [विधब्रह्म] नवप्रकार का ब्रह्मचर्य। (भा.९८) णव वि [नव नवीन, नूतन, नया। णादियदि णवं कम्मं । (मो.४८) णव सक [नम] नमन करना, प्रणाम करना। णविएहिं तं णविज्जइ (मो १०३) णविज्जद ( 40 )कर्म और भाव में ई और दान For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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