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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 150 होति णाणआवरणा। (स.१०१) -गुण पुं न [गुण] ज्ञानगुण । णाणगुणादोपुणो विपरिणमदि। (स.१७१) णाणगुणेण विहीणा। (स.२०५) -जुत्त वि [युक्त ज्ञान युक्त,ज्ञान सम्पन्न। (बो.६)जं चरइ णाणजुत्तं । (चा.८)-ट्ठिय वि [स्थित ज्ञान में स्थित। अट्ठा णाणट्ठिया सबे। (प्रव.३५) -ड्ढ वि [आढ्य] ज्ञानयुक्त, ज्ञानसहित। (प्रव. चा.६३, १०६) -पमाण/प्पमाण न [प्रमाण] ज्ञान प्रमाण। आदा णाणपमाणं। (प्रव.२३) णाणप्पमाणमादा। (प्रव.२४) -प्पग/प्पाण वि [आत्मक] ज्ञानात्मक, ज्ञानस्वरूप। (प्रव. जे. ६७, १००) -मग्ग पुंन [मार्ग] ज्ञानपथ । (चा.१४) -मअ/मय वि [मय] ज्ञानमय, ज्ञानयुक्त। (स.१३१, प्रव.२६, मो.१) -विग्गह पुं [विग्रह] ज्ञानशरीरी। (मो.१८) -विजुत्त वि [वियुक्त ज्ञान से रहित। (मो.५९) -सत्य न [शस्त्र] ज्ञानरूपी शस्त्र | लुणंति मुणी णाणसत्येहि। (भा.१५७)-सलिल न [सलिल] ज्ञानरूपी जल। पाऊण णाणसलिलं। (भा.९३) -सरूव वि [स्वरूप] ज्ञानस्वरूप, ज्ञानात्मक। णाणं णाणसरूवं। (चा.३९) -सहाअ/सहाव पुं [स्वभाव] ज्ञान स्वभाव। (स.१६२, भा.६२) णाणसहाओ चेयणासहिओ। -सुद्धि स्त्री [शुद्धि] ज्ञान की शुद्धि, ज्ञान की निर्मलता, ज्ञान की निर्दोषता। (शी.२०) णाणं (प्र. ए. स.७) णाणाणि (प्र.ब.पंचा.४३) णाणं (द्वि. ए. पंचा.४७) णाणेण (तृ.ए.द.३०)णाणे णाणम्मि (स.ए.द.८, १४)णाणदो (पं. ए. द.१५) णाणा अ [नाना] अनेक, पृथक्-पृथक्। (निय.९,प्रव.जे.२७) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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