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125 जइधम्मं णिक्कलं वोच्छे। (चा.२७) जइआ/जइया अ [यदा] जो, जितने, जिस प्रकार, जिस समय। (स.१८३,२२२) जइया उ होदि जीवस्स। जं अ [यत्] जो, क्योंकि, जो कुछ, परन्तु, जैसे। (पंचा.८२,९०,
स.१४५,१७२,२६०, बो.४) कम्मं जं पुवकयं । (स.३८३) जंगम वि [जङ्गम] चलने वाला, एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करने वाला। (बो.१२) जंगमेण रूवेण। (बो.१२) -देह न [देह] जंगम शरीर, चलता-फिरता शरीर। सपरा जंगमदेहा। (बो.९) जंत न [यन्त्र] यन्त्र, शिल्पकर्म। जंतेण दिव्वमाणो। (लिं.१०) जंप सक [जल्प्] बोलना, कहना, जह को विणरो जंपदि। (स.३२५) राएण कदंति जंपदे लोगो। (स.१०६) जंपिऊण (सं.कृ.भा.१६३) जंपेमि (व.प्र.ए.मो.२९) जग न [जगत् संसार। (प्रव.२९) अक्खातीदो जगमसेसं । जगदि
(स.ए.प्रव.२६) सव्वे वि य तग्गया जगदि अट्ठा। जग्ग अक [जागृ] जागना, नींद से उठना, सचेत होना। (मो.३१) जो सुत्तो ववहारे, सो जोई जग्गए सकज्जम्मि। (मो.३१) जग्गाविज्जइ (प्रे.व.प्र.ए.) कम्मेहिं सुवाविज्जइ, जग्गाविज्जइ तहेव कम्मेहं। (स.३३३) जठर न [जठर] पेट, उदर। (भा.४०) जठरे वसिओ सि जणणीए।
(भा.४०) जण पुं [जन] 1.मनुष्य, आदमी। चोरो त्ति जणम्हि वियरंतो।
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