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छिण्ण वि [छिन्न खण्डित, कटे हुए, छिन्न-भिन्न। (भा.२०) छिण्णा णाणत्तमावण्णा। (स.२९४) छुधा/छुह/छुहा स्त्री [क्षुध्] छुधा, भूख। (प्रव.चा.५२) रोगेण वा छुधाए। (प्रव.चा.५२) छुहतण्हभीरु। (निय.६) ण य तिण्हा णेव छुहा। (निय.१७९) छेद पुं [छेदय्] छिन्न करना, तोड़ना, काटना। (वि.कृ.स.२९५) छेद पुं [छेद] छेद, नाश, नष्ट। (प्रव.चा.११) छेदो समणस्स कायचे?म्मि। (प्रव.चा.११) -उवट्ठावग न [उपस्थापक] संयम के छेद का फिर स्थापन करने वाला, संयम विशेष। (प्रव.चा.९) समणो छेदोवट्ठावगो होदि। (प्रव.चा.९) -विहीण वि [विहीन] छेद विहीन, भङ्ग रहित। छेदविहूणो भवीय सामण्णे। (प्रव.चा.१३) छेदण वि [छेदन] छेदन करने वाला, काटने वाला, तोड़ने वाला, छिन्नभिन्न करने वाला। (निय.६८) बंधणछेदणमारण। (निय.६८) छेदणअ न [छेदनक] छैनी। पण्णाछेदणएण उ. छिण्णा णाणत्तमावण्णा। (स.२९४)
जस [यत्] जो। जं (प्र.ए.चा.३) जो (प्र.ए.चा.३९) जत्तो (पं.ए. प्रव.५) जत्थ (स.ए.भा.३३) जो वावीसपरीसहसहति । (सू.१२) जइ अ [यदि] 1.यदि, जो। (स.२८९,२९०, सू.१८, भा.४) जइ दसणेण सुद्धा। (सू.२५) 2. पुं [यति] मुनि, इन्द्रियविजयी। (चा.२७,भा.५)-धम्म पुं न [धर्म] यतिधर्म।सुद्धं संजमचरणं
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