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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 126 (स.३०१) जणेहिं (तृ.ब.प्रव.चा.२३) मा जणरंजणकरणं । (भा.९०) -वद पुं [पद] जनपद, नगर। 2. जन्म| जणुव्वेगो। (निय.६) जण सक [जनय] उत्पन्न करना, पैदा करना। जणयंति विसयतण्हं। (प्रव.७४) जणयंति (व.प्र.ए.) जणेदि (व.प्र.ए.निय.१२८) जणण न [जनन] उत्पत्ति। (निय.१७८) मुच्छादिजणणरहिदं। (प्रव.चा.२३) जणणी स्त्री [जननी] माता, जननी। (भा.१७,१९,४०) जणणीए (ष.ए.भा.४०) जणणीण (ष.ब.भा.१७) जद घि [यत] यत्नाचार, उपयोगमय प्रवृत्ति। (प्रव.चा.१८) जदा अ [यदा] जब, जिस समय। (पंचा.१४३, प्रव.९) कोधो व जदा माणो। (पंचा.१३८) जदि अ [यदि] 1.देखो जइ। (पंचा.९२, स.८५, प्रव.६९) -वि अ [अपि] लेकिन, किन्तु, यद्यपि। कुब्बदु लेवो जदिवि अप्पं । (प्रव.चा.५१) 2.पुं [यति] देखो जइ। (स.१५६, प्रव.जे.९७) जदीणं (ष.ब.प्रव.जे.९७) जध/जधा अ [यथा] जैसे, जिस तरह, जिस प्रकार। (प्रव.६८) -जाद वि [जात] यथाजात, वास्तविकरूप में उत्पन्न। जधजादरूवजादं। (प्रव.चा.५) -त्यपद वि [अर्थपद] यथावस्थित पदार्थ। जत्थपदणिच्छदोपसंतप्पा. (प्रव.चा.७२) -आदिच्च पुं [आदित्य] जिस प्रकार सूर्य। सयमेव जधादिच्चो। (प्रव. ६८) जप्प पुं [जल्प] वचनविस्तार, कथन। (निय.९५,१५०) जप्पेसु जो For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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