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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 122 छ छ त्रि [षष्] छह संख्याविशेष। (पंचा.७६, स.३२१, निय.२१) -क्क वि [क] छह प्रकार। (द्वा.४१) -काय न [काय] छहकाय, छह प्रकार के जीव। (बो.२,५९,पंचा.११०,१११) छक्कायसुहंकरं। (बो.२) पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय ये छह भेद हैं। -जीव पुं [जीव] छह जीव। (स.२७६,भा.१३२) -प्रणवदि वि [नवति] छियानवें। (भा.३७) एक्केक्केंगुलिवाही, छण्णवदी होति जाणमणुयाणं। -तीस स्त्री न [त्रिंशत्] छत्तीस। छत्तीसं तिण्णिसया। (भा.२८) -६व्व पुं न [द्रव्य छह द्रव्य। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। एदे छद्दव्वाणि । (निय.३४) -इस त्रि [दश] सोलह। (भा.७९) -प्पयार पुं [प्रकार छह प्रकार। ते होति छप्पयारा। (पंचा.७६) खंधा हु छप्पयारा। (निय.२०) स्कन्ध के छह भेद हैं। (देखो-खंध) -भेय पुं न [भेद] छह प्रकार। (निय.२१) -विह वि [विध] छह प्रकार। (स.३२१) छस्सु (स.ब.प्रव.चा.१८) । छंड सक [छर्दय् मुच्] छोड़ना, त्याग करना। (प्रव.चा.१९, सू.१४, मो.६८) सुत्तठिओ जो हु छंडए कम्मं । (सू.१४) छंडंति (व.प्र.ब.मो.६८) छंडिऊण (सं.कृ.मो.७) छंडिय वि [मुक्त] छोड़ा हुआ। इदि समणा छंडिया सव्वं । (प्रव.चा.१९) छंद पुंन [छन्दस्] छन्द, वृत्त। वायरणछंदवइसेसिय। (शी.१६) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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