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115 (निय.८८) चत्ता (अ. भू. मो. ७८, ७९) ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि। चत्तारि वि चतुर् चार। जो चत्तारि वि पाए। (स.२२९, भा.११,
चा.२३) चदु वि [चतुर् दार। चदुचंकमणो भणिदो। (पंचा.७१) -कप्प पुं [कल्प] चार कल्प। (द्वा.४१) ब्रह्म आदि चार कल्प। -क्क वि [ष्क] चतुष्क, चार प्रकार, चारों। पाणचदुक्कहि संबद्धो। (प्रव.जे.५३)-ग्गदि स्त्री [गति] चार गतियाँ चदुग्गदिणिवारणं । (पंचा.२) -गुण वि [गुण] चतुर्गुण, चार गुण। चदुगुणणिद्धेण । (प्रव.जे.७४) -वियप वि [विकल्प] चार विकल्प। (स.१७८, पंचा.१४९) इदि ते चदुब्बियप्पा। (पंचा.७४) -विह वि विध]
चार प्रकार। (स. १७०, पंचा.३०) चदुहिं (तृ. ब.पंचा.३०) चमर पुं चमर चमर, चामर, जरी से निर्मित उपकरण विशेष,
चँवर, प्रातिहार्य का एक भेद। (द.२९) चउसद्विचमरसहिओ। (द.२९) चम्म न [चर्मन्] चमड़ा, खाल। (द्वा.४५) चम्ममयमणिच्चमचेयणं
पडणं। चय सक [त्यज्] छोड़ना, त्याग करना। (स.३५, भा.९१, मो.४) परदव्वमिणंति जाणिदुं चयदि। (स.३५) चयसु (वि. आ. म.ए.भा.९१) चयहि (वि. आ. म. ए. मो. ४) चएवि (अप. सं. कृ. मो.२८) चर सक [चर] गमन करना, आचरण करना, चलना, जाना।
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