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116 (प्रव. चा.३०, निय. १४४, बो.१०, भा.४, शी.५) चरियं चरउ सजोग्गं। (प्रव.चा.३०) जो चरदि संजदो खलु। (निय.१४४) चरंताण (व.कृ.द.५) चरण पुं न [चरण] आचरण, जीवन चर्या, चरित्र। (स.१५५, प्रव.चा.२९,मो.५०,चा.४५,निय.१४८,द.३१) चरणं एसो दु मोक्खपहो। (स.१५५) चरणदो (पं.ए.निय.१४८) चरणाओ (पं.ए.द.३१) चरमंत पुं [चरमान्त सबसे अन्तिम। मिच्छादिट्ठी आदी, जाव
सजोगिस्स चरमंतं। (स.११०) चरित्त न [चरित्र] चरित, आचरण। (स.७, प्रव.२, निय.३, सू.२५,शी.५,मो.५७)णवि णाणं णचरित्तं । (स.७)-वंत वि
वन्त] चरित्रवान्, आचरणसंपन्न। अप्पा चरित्तवंतो! (मो.६४) -सुद्ध वि [शुद्ध] चारित्र से शुद्ध। णाणं चरित्तसुद्धं । (शी.६) -हीण वि [हीन] चारित्रहीन, चारित्ररहित। णाणं चरित्तहीणं। (शी.५, मो.५७) चरित्ताणि (द्वि.ब.पंचा.१६४) चरित्तादो (पं.ए. प्रव. ६) चरिय न [चरित] आचरण। (पंचा.१५९) चरिया स्त्री [चर्या] आचरण, गमन, प्रवृत्ति, चर्या। चरिया पमादबहुला। (पंचा.१३९) अपयत्ता वा चरिया। (प्रव.चा. १६) -जुत्त वि [युक्त] चर्यायुक्त,आचरणयुक्त सागारणगारचरियजुत्ताणं। (प्रव. चा.५१) चल वि [चल] चंचल, अस्थिर चलमलिणमगाढत्तविवज्जिय।
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