________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चौसठ। (द.२९) चउण वि [च्यवन च्युत, नीचे आना। (बो.२७) चउर वि [चतुर] चार| चउरो चिट्ठहि आदे। (मो.१०५) चउरो भण्णंति बंधकत्तारो। (स.१०९) -असी स्त्री [अशीति] चौरासी। (भा.१२०) चउरासीलक्खजोणिमज्झम्मि। (भा.४७, १३४) चंकम वि [चंक्रम] इधर उधर घूमना। (प्रव. चा.१३) चंकमण न [चंक्रमण] परिभ्रमण। (पंचा.७१) । चंद' चन्द्रचन्द्र, चन्द्रमा। (भा.१४३) -प्पह पुं [प्रभ] चन्द्रप्रभ,
आठवें तीर्थकर का नाम। (ती.भ.४) चक्क न [चक्र] चक्र, अस्त्रविशेष। -घर/हर पुं [धर चक्रधर, चक्रवर्ती कुलिसाउहचक्कधरा। (प्रव.७३) चक्कहररायलच्छी। (भा.७५) -ईस पुं [ईश] चक्रेश, चक्रवर्ती। चक्केसस्स ण सरणं । (द्वा.१०) चक्खु पुंन [चक्षुष] नेत्र, आँख, दर्शन का एक भेद। (स.३७६, प्रव.२९, निय.१४) चक्खू अचक्खू ओही| -जुद वि [युत] नेत्रों सहित, नेत्रों का आलम्बन । दंसणमवि चक्खुजुदं। (पंचा.४२) -विसय पुं [विषय चक्षु के विषय। चक्खूविसयमागयं रूवं। (स.३७६) चडक्क पुं न दि] वचन की मार,चपेट,कठोर|दुज्जणवयण
चडक्कं। (भा. १०७) चत्त वि [त्यक्त छोड़ा हुआ, परित्यक्तावोसट्टचत्तदेहा। (द.३६) चत्ता (सं. कृ. निय.८८, प्रव.७९) चत्ता हि अगुत्तिभावं।
For Private and Personal Use Only