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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चइ सक [त्यज्] छोड़ना, त्याग करना। (निय.९१, भा. ६०, चा.४५) लहु चउगई चइऊणं। (भा.६०) चइऊण (सं.कृ.निय.९१, भा.७३) चइऊणं (सं.कृ.निय.१५७) भुंजेइ चइत्तु परतत्तिं। (निय.१५७) चइय न [चैत्य] प्रतिमा, देव, चैत्य। (भा.९१) चउ वि [चतुर्] चार, संख्या विशेष| (निय.२३, भा.२३, द.१८, चा.४५) -क्क वि [क] चार प्रकार। पावदि आराहणाचउक्कं। (भा.९९) -गइ स्त्री [गति चतुर्गति, चार गतियाँ। लहु चउगइ चइऊणं। (चा.४५, भा.६०, निय.४२) -णाण न [ज्ञान] चार ज्ञान। (मो.६०) -ण्णिकाय न [निकाय] चार निकाय, चार समूह। (पंचा.११८) -तीस वि [त्रिंशत् चौंतीस। (बो.३१, द.३५) चउतीस अइसयगुणा। (बो.३१) -त्थ न [थ] चतुर्थ, चौथा। (भा.११४, चा.२६) -दस त्रि [दशन्] चौदह, चतुर्दश। (भा.९७,बो.६१) चउदसगुणठाण---1 (भा.९७)-दसम [दशम] चौदहवां। (बो.३५) -भेद/भेद पुं न भेद] चार भेद,चार प्रकार| (निय.१२,१७) सण्णाणं चउभेदं । (निय.१२) तेरिच्छा सुरगणा चउभेदा। (निय.१७)-मुह पुं [मुख] चतुर्मुख, ब्रह्मा, विधाता। कर्मो से विमुक्त आत्मा चतुर्मुख (ब्रह्मा) आदि के रूपों को प्राप्त होती है। सव्वण्हू विण्हू चउमुहो बुद्धो। (भा.१५०) -विह/विह वि [विध] चार प्रकार। (निय. १०८, भा.१६) सेवहि चउविहलिंग। (भा.१११) -वीस स्त्री न [विंशति] चौबीस। पंचिदिय चउवीसं। (भा.२९) -सट्ठि स्त्री [षष्टि] For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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