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गिहि पुं [गृहिन्] गृही, संसारी, गृहस्थ। (स.४१०) पाखंडी
गिहिमयाणि लिंगाणि । (स.४१०) गिहिद वि [गृहीत] ग्रहण किया हुआ। सव्वत्थ गिहिदपिण्डा।
(बो.४७) गुंभी स्त्री [दे] क्षुद्र कीट विशेष, कुम्भी, तीन इन्द्रिय जीव ।
जूगागुंभीमक्कडपिपीलियाविच्छियादिया कीडा। (पंचा.११५) गुड पुं गुड] गुड, मीठा, मधुर रस । (स.३१७, भा.१३७) गुडदुद्धं पि पिबंता। (भा.१३७) गुण पुंन [गुण] गुण, स्वभाव, धर्म, पर्याय । (पंचा.१०, स.१०८ प्रव.१० निय.३३, भा. १५, बो. २७) -अंतर न [अन्तर] गुणों के मध्य, गुणों के बीच। (प्रव. जे. १२) -गंभीर वि [गम्भीर] गुणों में गंभीर। धीरा गुणगंभीरा। (निय.७३) -गण [गण] गुण समूह । चउरासी गुणगणाण लक्खाई। (भा.१२०) -चित्त न [चित्त] चेतना, ज्ञानगुण| अणंतणाणाइ गुणचित्तं। (भा. ११९) -ठाण/ट्ठाण न [स्थान गुणस्थान। (स.५५,बो.३०,निय. ७८) गुणट्ठाणा य अत्थि जीवस्स। (स.५५) -ड्ढ [य] गुणी, गुणाढ्य, गुणों से परिपूर्ण । समणं गणिं गुणड्ढे । (प्रव. चा.३) -त वि त्व] गुणों वाला, गुणीपना। (प्रव.८०) -दोस पुं [दोष] गुण
और दोष | भावो कारणभूदो, गुणदोसाणं जिणा विंति। (भा.२, चा.४२) -पज्जत्त वि [पर्याप्त गुणों से परिपूर्ण। (बो.५८) आयत्तणपुणपज्जत्ता। (बो.५८) -पज्जय पुं [पर्यय] गुण और पर्याय। गुणपज्जएसु भावा। (पंचा.१५) -रयण न [रत्न]गुणरूपी
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