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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् लज्जा दया दमो धैर्य, पुरुषालाप-वर्जनम् । एकाकित्व-परित्यागो, नारीणां शील-रक्षणम् ॥ ११ ॥ लज्जा, दया, इन्द्रियों की रोक-थाम, धैर्य धारण करना, अन्य पुरुष के साथ विशेष बातचीत को त्याग देना, अकेलीपन का त्याग ये स्त्रियों के शील रक्षक होते हैं ।। ११॥ एवं कुर्वती तत्र कुलालगृहे सुखेन निवसति स्म । इतः स मन्त्री तेन व्यवहारिणा सह सुखेन रत्नद्वीपं गतः । तत्र सुरपुरनाम नगरं पुरन्दराभिधश्च राजा राज्य शास्ति स्म । अथ तेन व्यवहारिणा स्वप्रवहणेभ्यः सर्वक्रयाणकान्युत्तार्य वक्षरेषु निक्षिप्तानि। तेषां क्रयविक्रयादिः सर्वो व्यवसायस्तेन श्रेष्ठिना मन्त्रिणे समर्पितः, तेन स मन्त्री तत्र सर्वव्यवसायं करोति स्म । सागरदत्तो न्यवहारी तु नगरान्तः स्थितः गणिकायामासक्तोऽजनि, तस्या गृहे स सागरदत्तो व्यवहारी तस्यां मुग्धमनाः निरन्तरन्तया सार्द्धमभिनवान् भोगाननुबभूव । अतः सूर्यस्योदयास्तावपि न जानाति स्म । शास्त्रेऽप्युक्तं यैर्निजशीलरत्न विलुप्तं तैर्धनादिजन्मसमस्तं हारितम् । इसतरह करती हुई वह उस कुंभार के घर में सुख से रहने लगी। इधर वह मंत्री उस सेठ के साथ सुख से रत्नद्वीप में गया। वहां सुरपुर नाम का नगर था और पुरंदर नाम का राजा राज्य करता था। अब उसने अपनी नाव ( जहाज ) से सभी वस्तुओं को उतार कर बखारों में डाल दिया। उन वस्तुओं के खरीदने और बेचने का सब हक्क उसने मंत्री को सौंप दिया। इसलिए वह मंत्री वहां सब व्यापार करने लगा और सागरदत्त सेठ उस नगर में रहने वाली वेश्या में आसक्त हो गया। वह सागरदत्त सेठ उत वेश्या के घर में रहता हुआ उस (वेश्या) में मोहित होकर हमेशा उसके साथ नये नये भोग-विलासों का अनुभव करने लगा, इसलिए, सूर्य का उगना और डूबना भी नहीं जानता था। शास्त्र में भी कहा है कि-जिसने अपना शील (ब्रह्मचर्य, सदाचार ) रूपी रत्न को गमा दिया उसने धन आदि सारा जीवन, हार चुका। यतः क्योंकि दत्तस्तेन श्चारित्रस्य जगत्यकीर्ति-पटहो गोत्र जलांजलिर्गुणगणारामस्य मषी-कूर्चक दावानलः । For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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