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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org संकेतः सकलापदां शिवपुर-द्वारे शीलं येन निजं विलुप्तमखिलं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपाटो दृढः, त्रैलोक्य - चिन्तामणिः ॥ १२ ॥ यतः - श्री कामघट कथानकम जिसने तीनों लोक में चिन्तामणि समान अपना शील खो दिया उसने संसार में अपयश के ढ़िढ़ोरे पिटवा दिए, अपने वंश में कालिमा लगाई, चरित्र धर्म की जलांजलि दे दी, गुणों के समुदाय रूपी उद्यान में आग लगा दी, सारे विपत्तियों को ( अपने पास आने के लिए) इशारा कर दिया और मोक्ष रूपी नगर के दरवाजे पर मजबूत किवाड़ लगा दिया अर्थात् अपना सर्वस्व खो चुका ॥ १२ ॥ पुनस्तेन कुशीलेनापध्यानमत्ति विपत्तिं च परस्त्रीलम्पटा जना दिने दिने लभन्ते, तांश्च परदारवेश्यादिभोगिनो निन्दितनरास्तथा ये दुर्जनाः पिशुनाः छलान्वेषिणश्च ते प्रतिपदं निगृह्णन्ति । राजादिलो का दण्डयन्ति स्वजनादयश्चापि निभर्त्सयन्ति । और उस खराब आचरण से पर स्त्री में लम्पट लोग खराब ध्यान, विपत्ति और शारीरिक दुःख दिन दिन पाते हैं और उन परस्त्रीगामी तथा वेश्यागामी जनों को क्षुद्र व्यक्ति तथा दुर्जन, चुगल खोर और दोष ढूढ़ने वाले बात बात में दण्ड करते हैं । क्योंकि कलिः कलंकः परलोकदुःखं, यशश्च्युतिर्धर्म-धनस्य हानिः । हास्यास्पदत्वं स्वजनैर्विरोधो, भवन्ति दुःखानि कुशीलभाजाम् ॥ १३ ॥ झगड़ा, बदनामी, परलोक में दुःख अपयश, धन और धर्म की हानि, लोगों में हँसी, अपने भाइयों से वैर - विरोध, ये दुःख कुशील बालों (बद चलन- परस्त्री गामी, वेश्यागामी) को होते हैं ।। १३ ।। अथ स श्रेष्ठी विषयमोहितस्तस्यै गणिकायै प्रसादभूतं मुद्रालक्षं ददौ । स च यानि २ कार्याणि गणिका समाज्ञापयति स्म तानि सर्वाणि तत्क्षणमेवातिहर्षेण विदधे । कुललज्जामर्यादा-दीनगणयित्वा यथा मद्यपाः परवशदेहा भवन्ति तथा सोऽपि विषयमदान्धो बभूव । For Private And Personal Use Only इसके बाद उस सेठने विषय में मोहित होकर उस वेश्या को खुश होकर लाख रुपये दिये । और जिस जिस कार्य को वेश्या हुक्म देती थी सेठजी उन कामों को फौरन ( उसी समय ) ही बड़े आनन्द से
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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