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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ श्री कामघट कथानकम . पकड़ कर उचित स्थान में आसन देकर बैठाया। फिर मंत्रीने कामघट के प्रभाव से ऐसी दिव्य पक्की रसोई परोसी कि जिसको राजा आदिक सभी लोग बिना श्रम के सुख पूर्वक खाने लगे और प्रशंसा करने लगे । तद्यथा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे शुभ्र गोधूमचूर्णं घृत- गुड-सहितं नालिकेरस्य खंड, द्राक्षा-खर्जूर-सुंठी-तज-मरिच-युतं वेलची- नागपुष्पम् । पक्त्वा ताम्र कटाहे तल-वितल-तटे पावके मंदहीने, धन्या हेमन्त काले प्रियजन सहिता भुञ्जते लापसीं ये ॥ ८२ ॥ स्वच्छ गेहूं के चूर्ण में घी और गुड़ मिलाकर नारियल ( गरी ) के छोटे छोटे टुकड़े मिलावें, फिर उसमें दाख, छोड़ा, सोंठ, तज, कालीमिर्च, इलाइची और नाग केसर डाल कर तांबे की कड़ाह में धीमी धीमी आंच से पकावे और बीच में नीचे ऊपर करता हुआ कड़छू से खूब लारते रहने से अच्छी लापसी तैयार होती है, ऐसी लापसी को हेमन्त ऋतु में अपने प्रिय परिवारों के साथ भाग्यवान ही लोग खाते हैं ।। ८२ ।। हिंग्वाजीरे मेरी चैर्लवण पुटतरेरार्द्रकाद्य : सुपक्कान्. सिग्धान्पक्कान् मनोज्ञान्परिमल-बहुलान्पेशलान्कुङ्कुमाभान् । क्षिप्त्वा दन्तान्तराले मुर-मुर-वदतः स्पष्ट-सुस्वाद-युक्तान्, धन्या हेमन्त काले मुख - गत- बटकान्भुञ्जते प्रीतिदत्तान् ॥ ८३ ॥ हींग, जीरा, काली मिर्च, सेंधा नमक और अदरख से मिले हुए तेल या घी में अच्छी तरह पके हुए सुन्दर सुगन्ध ( केसर - कस्तूरी ) युक्त कुंकुम की रंग की तरह अच्छे जायकेदार और दांत के तले • दबाने पर जिन में 'मुर मुर' आबाज हो ऐसे प्रेम से दिए गए बड़े ( बाड़ा-सेबई आदि) को हेमन्त ऋतु में भाग्यवान् ही भोजन करते हैं ॥ ८३ ॥ गोधूमचूर्ण लवणेन मिश्रितं, जलेन पिण्डीकृत हस्तमर्दितम् । तद्गोलिका गोमय-वह्निपक्काः, क्षुधाहराः पुष्टिकरा घृतेन ॥ ८४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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