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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् गेहूं के चूर्ण में संधा नमक मिलाकर और जल देकर खूब गूंधे (साने ) फिर अन्दाज से गोले बनाकर गोइठा ( छाना ) की आग में पकाने से बाटी तैयार होती है उसमें खूब घी डालकर खाने से जल्दी भूख नहीं लगती और वह पुष्ट करने वाली होती है ।। ८४ ।। इति राजादिसर्वजनमुखादेवं प्रशंसां निशम्य मन्त्रिणा राज्ञेऽभिहितम्राजा आदि के मुख से इसतरह की प्रशंसा सुनकर मंत्रीने राजा को कहापिव भूप! सुदुग्धमहो ! मुदितः, कफ-मारुत-पित्त-विकारहरम् । मदनोदययोषिति कामकरं, सुरभि-द्रव-मिश्रित-ताप-हरम् ॥ ८५ ॥ हे राजन् प्रेम से इस अच्छे दूध को पीजिए, यह दृध कफ, पित्त, वायु ( त्रिदोष ) के विकार को हरण करने वाला है, कंदर्प को उत्पन्न करने वाला और स्त्रियो में इच्छा बढ़ाने वाला, तथा सुगन्धित द्रव्यों से युक्त होने के कारण ताप नाशक है ।। ८५॥ दधि भक्षय भूप ! सुखंडयुतं, घनसार-विमिश्रित-गन्धयुतम् । शुचि-काम-करं बल-पुष्टि-करं, शुभ-सैन्धव-जोरकमाशुगहम् ॥ ८६ ॥ हे राजन्, अच्छी मिसरी और कर्पूर से युक्त जायकेदार, खुशबूदार और लज्जतदार इस दही को चखिए, यह शुद्ध वीर्य को बढ़ानेवाला, बल-पुष्टिकारक है तथा सेंधा नमक और जीरा मिलाने से यह वायु विकार को दूर भगाता है ।। ८६ ।। घृतमद्धि जनेश्वर ! पुष्टिकर, मदनोदयमिन्द्रिय-तृप्ति-करम् । बहु-कान्ति-करं हृत-ताप-भरं, मधुरेश-सुधा-रस-दूरकरम् ॥ ८७॥ हे जनवल्लभ ( राजन ), वीर्यवर्धक, इन्द्रिय को तृप्त करने वाला, बल पुष्टि कारक इस घी को खाइए । यह अत्यधिक कान्ति को बढ़ाने वाला, शरीर के संताप को हरण करने वाला और अमृत के रस को भी मात करने वाला है ।। ८७ ॥ शशि-कांति-समुज्ज्वल-शंख-निभं, परिपक-सुगन्ध-कपित्थ-समम् । युवती-मृदु-पाणि-विनिर्मथितं, पिव तक्रमिदं तनु-रोग-हरम् ॥ ८ ॥ हे राजन्, चन्द्रमा और शंख के समान अत्यन्त उज्ज्वल, पके हुए सुगंध वाले कपित्थ के समान For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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