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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ श्री कामघट कथानकम यावान्मेलापकोऽस्ति तावन्तं मेलापकंगृहीत्वा मद्गृहे समागन्तव्यम् । नूनं यथायोग्ययुक्त्या भवन्तमहं भोजयिष्यामि । एतन्निशम्य राजा चिन्तयपि स्म अहो ! वणिग्मात्रस्य मन्त्रिणः कियत्साहसं ? नूनमेतेन मम मेलापकः पानीयमपि पाययितुं न शक्यते। एतत्तु पिपीलिकागृहे गतगजराजप्राघूर्णकवद् ज्ञेयं । अतः किं पुनर्भोजनं कारयितुं शक्यते ?, तदा रुष्टेन राज्ञा मन्त्रिवार्तामन्यथा करणाय तदिन एव स्वभृत्यान्प्रेष्य स्वसर्वदेशमेलापको मेलितः । अथ राज्ञा सचिवालये सचिवस्वरूपदर्शनार्थ स्वचरः प्रेषितः, कियती भोजनसामग्रो जायमानाऽस्तीति विलोकय । तेनाऽपि तत्रागत्य यदामात्यालयस्वरूपं विलोकितं, तदा कापि मुष्टिमात्राप्यन्नसामग्री नाऽवलोकिता । पुनः सोऽमात्यस्तु सप्तमभूमौ सामायिकं गृहीत्वा नमस्कारमन्त्रं जयंस्तेन दृष्टः, ततस्तेन चरेण पश्चादागत्य सत्सर्वं स्वरूपं राज्ञे निवेदितं, तदाकर्ण्य भूपश्चिन्तयति स्म-नूनमेष मन्त्री ग्रथिलो भृत्वा दूरं गमिष्यति पश्चान्ममैवतेभ्योऽखिलेभ्यो भोजनं देयं भविष्यति । अतः किं कर्तव्यमिति विचारमूढो जातस्तेन विचार्य कार्यकरणं युक्तमेव । फिर मंत्री के घर आने के बाद उसके रास्ते की गर्मी के उपशमन के लिए मंत्री की स्त्रीने अमरुद लाने के लिए एक दासी बाजार में भेजी थी वह वही रत्न वाला बीजपूरक (अमरुद ) लाकर मंत्री को दे दी। मंत्रीने भी वह खाया और उसके बीच से वह रत्न निकाल लिया। अब उस चार (गुप्तदृत ) ने सभी हाल देखकर राजा के आगे सब बात कह दी। यह सुनकर राजाने विचार किया। अरे। पक्का, यह भी धर्म का प्रभाव ही है, ऐसा उसने अपने मन मे रखा। फिर रात में मंत्रीने धर्म से प्राप्त उस कामघट के प्रभाव से सात भूमि वाला सोने का महल बनाया, उसमें लाल मणियों से जड़े हुए सोने के कपिशीर्ष चमक रहे थे। ३२ बत्तीस बाजों से युक्त देव-गान और नाच से युक्त नाटक हुआ। यह देखकर और सुनकर राजा आश्चर्य से चकित होकर विचारने लगा। क्या यह स्वर्ग है ? या इन्द्रजाल है ? या खप्न देखता हूँ ? ऐसा विचारता हुआ रात्रि में सोगया। फिर प्रातःकाल में अपने नौकर को पूछा, तब उसने ( नौकरने ) कहा-हे स्वामी, यह नाटक रात्रि में मंत्रीने कामघट के प्रभाव से किया, और सोने का किला, मणियों के कपिशीर्ष और बत्तीस वाद्य और नाच से युक्त आलीशान महल बनाया। इधर मंत्री सुबह में राजा को धर्म का फल देखाने के लिए बेशकीमती कपड़े पहन कर सोने की थाली भरकर राजा से मिला। राजाने पूछा,—इतने रत्न कहां से लाए ? मंत्रीने कहा-धर्म के प्रभाव से। फिर राजाने कहा-रात्रि में सुवर्ण के महल पर बत्तीस वाजों से युक्त तुम्हारा ही नाटक था -मंत्रीने कहा-हां मेरा ही था। तब उसके महल को देखने की इच्छा से राजाने मंत्री को कहा-तुम एक महीना के भीतर थोड़े ही परिवार से युक्त मुझे भोजन कराओ। हे स्वामी, आज ही मैं श्रीमान् (आप) को For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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