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श्री कामघट कथानकम
नहीं जीमते थे, केसर बाबू को भोजन करने के लिए बढ़ियां पीढ़ा ( काठ का आसन ) चाहिए, पुण्डरीक बाबू को बिलकुल महीन खुशबूदार दाने भोजन के लिए चाहिए और चौथा घोघर पेटू और धृष्ट था, उसे किसी तरह पेट भरना चाहिए।
ये चारों के चारों एक ही दिन अपने ससुर के घर पर आगये। पांच-सात दिनों तक तो ससुरशाले आदिने उनका उचित सत्कार किया, उनके नियमित हवन, पीठ आदि दान पूर्वक सुन्दर खान-पान का व्यवहार किया। कुछ अधिक दिन होने पर भी इन जमाईयों के नहीं जाने पर ससुराल वाले ऊब गए और ऊब कर एक दिन रबि बाबू को हवन करने की सामग्री नहीं दी, अतः समझदार रबि बाबू कुछ रुष्टता लिए हुए उसी दिन अपने घर चले गए। दूसरे दिन केसर बाबू को बिना पीढ़ा को ही भोजन दिया गया, अतः नाराज होकर बेचारे केसर बाबू भी अपने मकान उसी दिन चले गए। तीसरे दिन पुण्डरीक बाबू को मोटा अधजला खाना दिया गया, अतः वे भी अपना सा मुंह लेकर उसी दिन वहां से चलते बने, फिर चौथे दिन घोघर बाबू जब इन तीनों की हालत देखकर भी नहीं जा रहे थे, तो ससुराल वालों ने समझ लिया कि यह महा धृष्ट है, अतः उनको गरदनियां (गले में हाथ ) देकर वहां से भगा दिया।
___ इत्यादि विचार्य पुनर्मत्प्रतिज्ञाऽपि सम्यक् पूर्णाऽजन्यतो मया प्रातः श्वशुरादेशं समभिगा स्वदेशं प्रति गन्तव्यमेव । ततो निशानन्तरं प्रातःकाले मन्त्री स्वविचारानुकूलमखिलं विधाय ततोऽर्द्धराज्यसंपत्ति स्त्रीचतुष्टयं चादाय हयगजरथपत्त्यादिभिर्वारिधिपूर इव पापबुद्धिनामानं राजानं पराभवितुं श्रीपुरं नगरं प्रति चलितः। मार्गे समागच्छन् राजसमूहैरुपहारपूर्वकं वन्द्यमानः पूज्यमानश्चानुक्रमेण श्रीपुरनगरसमीपे समागतवान् । एवं तमागच्छन्तं विज्ञाय पूर्लोका व्याकुलाः समजायन्त, राजाऽपि परचक्रमागतं विदित्वा प्राकारं सजीकृत्यान्तः स्थितः । अथ मन्त्रिणा सन्ध्याकाले पापबुद्धिराजस्यान्तिके दूतः प्रेषितः स कीदृशः ।
इत्यादि विचार कर फिर मेरी प्रतिज्ञा भी पूरी हुई, इसलिए, मुझे सुबह में स्वसुर की आज्ञा लेकर अपने देश को जाना हो चाहिए। फिर रात बीतने के बाद सुबह में मंत्री अपने विचार के अनुसार सारा काम करके वहां से आधे राज्य की सम्पत्ति और चारों स्त्रियों को लेकर हाथी-घोड़े-रथ-सिपाही आदि से समुद्र की बढ़ाव ( बाढ़-ज्वार भाठा ) की तरह पापबुद्धि नाम के राजा को हराने के लिए श्रीपुर नगर को चला। मार्ग में आते हुए उसको अनेक राजाने भेंट देकर बन्दना की और पूजा की, इसतरह क्रमशः मंत्री श्रीपुर नगर के समीप आगया। इसतरह उसको आते हुए जानकर नगर के लोग व्याकुल हो गए। राजा भी दूसरे की सेना को आई हुई जानकर किला को मरम्मत कर किला के अन्दर बैठ गया। तब मंत्रीने संध्या काल में पापबुद्धि राजा के पास अपना एक दूत भेजा-वह दूत कैसा था
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