SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् ६७ ___इस कारण से, बल्कि, आदर-सत्कार पूर्वक कुछ देकर मंत्री उस सागरदत्त सेठ को अपने स्थान में भेज दिया। अनन्तर मंत्री उन चारों स्त्रियों के साथ 'दोगुन्दुक' देवता की तरह विषय-सुख ( भोगविलास ) को भोगते हुए वहां कितने दिनोंतक सुखपूर्वक रहा। अब, एक समय रात के पिछले पहर में (ब्राह्ममुहूर्त में ) वह धर्मबुद्धि नित्य के धर्म-कर्म करने के लिए जाग कर शौच आदि क्रिया करके पीछे मन में विचारने लगा-अब, ससुर के घर में रहते हुए मुझे बहुत दिन बीत चुके। इसके आगे यहां मेरा रहना अच्छा नहीं है, उपहास का कारण है और मान की जगह उलटा अपमान का घर है, इसलिए, यहां रहना ठीक नहीं है। यतःक्योंकिश्वशुर - गृह - निवासः स्वर्ग-तुल्यो नराणां, यदि वसति विवेकी पंच षड् वासराणि । दधि - गुड - घृत - लोभान्मासयुग्मं वसेच्चेत्, स भवति खर-तुल्यो मानवो मान-हीनः ॥ ७४ ॥ मनुष्यों को श्वसुर के घर ( ससुराल) में रहना स्वर्ग का समान है, मगर थोड़े ही दिनोंतक, इसलिए, यदि कोई बुद्धिमान ससुराल में रहता है तो पांच या छः दिनोंतक ही रहता है, अगर दही, गुड़, घी-दूध शकर आदि के लालच से दो मास वहां रह जाय तो वह व्यक्ति मान से रहित होकर गधे के समान हो आता है॥४॥ तथा च -- और भीहविविना रविर्यातो, विना पीठेन केसरः । कदन्नात्पुण्डरीकाख्यो, गल-हस्तेन घोघरः ॥ ७५ ॥ हवन के बिना रवि नामक व्यक्ति चला गया, पीढ़ा के बिना केसर चला गया, कदन्न ( मोटा अन्न) खाने से पुण्डरीक चला गया और गरदनियां देने से घोघर' चला गया ॥७॥ यहां कथानक इस प्रकार है कि-एक व्यक्ति के चार जमाई थे, चारों के क्रमशः रबि, केसर, पुण्डरीक और घोघर नाम थे। चारों का अलग अलग यह खास नियम था-रषि बाबू बिना हवन किए For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy