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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यथाजैसे : : श्री कामघट कथानकम् Ε के पीछे दौड़ पड़ी और उनसे मिल गई। मंत्रीने लाल करवीर की चाबुक से उसे मारा पीछे निस्तेज होकर वह अपने स्थान को लौट गई। फिर जिस गंभीरपुर नगर में उसकी पहली स्त्रियां थीं, उसी नगर के उद्यान वन के बीच में खाट के प्रभाव से मंत्री आगया । वहीं अत्यन्त सुन्दर वन के बीच में अपनी स्त्री रत्नसुन्दरी को बाहर छोड़कर वह मंत्री रहने की जगह देखने के लिए नगर में गया। इधर उस नगर से वह एक कपट कला में प्रवीण वेश्या आई । उसने अत्यन्त सुन्दर रूप उस ( मंत्री की स्त्री ) को देखकर मन में विचार किया । क्या यह स्वर्ग से रूठकर यहां स्वर्ग-बधू ( अप्सरा ) तो नहीं आगई ? या मंत्र साधन करने के लिए विद्याधरी तो नहीं है ? अथवा विष से उद्विग्न ( व्याकुल होकर घबड़ाकर ) नाग लोक की कन्या तो यहां नहीं आगई ? या रति है ? वा इन्द्राणी है ? किंवा शिव की पत्नी पार्वती तो नहीं है ? फिर उसने विचार किया - यदि यह मेरे मकान पर चले तो मेरा बहुत बड़ा भाग्य फले और अंगना हथिनी की जैसी चालवाली लोक को आनन्द देने वाली इस सुन्दरी से सुन्दर कल्पलता की तरह आरोपित हो ( बन ) जाए। इसलिए, किसी भी उपाय से इसको लेना चाहिए, ऐसा शोचकर उसके पास कर वह वेश्या उस ( रत्नसुन्दरी ) को कहने लगी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भद्रे काऽसि सुरांगना ? किमथवा विद्याधरी किन्नरी ? किं वा नागकुमारिका ? बुधसुता किं वा महेशप्रिया ? | पौलोमी किमु ? चक्रवर्ति-दयिता तीर्थाधिपोल्लंघनात्, शापात्कुद्ध-मुनीश्वरस्य वचसा त्वं कानने दृश्यसे ॥ ६४ ॥ हे बच्ची, तुम कौन है ? देवी है, या विद्याधरी है अथवा किन्नरी है ? किंवा पाताल कन्या है या देव कन्या है अथवा महादेव की पत्नी पार्वती है ? या इन्द्राणी है ? किंवा चक्रवर्ती की पत्नी है ? जो किसी क्रोधित मुनीश्वर के वचन से, शाप से, तीर्थाधिप के उल्लंघन से तुम वन में दीख रही हो ॥ ६४ ॥ अथ वत्से ! त्वं सत्यं ब्रूहि कस्य पत्नी ? कुत आगता व ते भर्तेति ? पृष्टा सती सा तदग्रे यथास्थितं निजस्वरूपं जगाद । तदा कपटपाटवोपेतया वेश्यया कथितम् - तर्हि त्वं मद्भ्रातृजायाि कथमत्र स्थिता ? मन्त्री तु मदालयं प्राप्तस्तेनैवाहं तवाह्नानार्थ प्रेषिताऽस्मि, ततस्त्वमेहि मया साकं मे मन्दिरे, ततः सा सरलस्वभावतया तन्मधुरवाक्यप्रपञ्चवञ्चिता तदैव तद्गृहं गता । हे बची, अब, तुम सच सच कहो कि किसकी स्त्री हो और कहां से आई हो और तुम्हारा पति कहां है ? ऐसा पूछने पर वह (रत्नसुन्दरी ) उस (वेश्या) के सामने अपना ठीक परिचय कह दिया । १२ For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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