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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम हे प्राणवल्लभ ! स्वामिन् ! इदानीमावां स्वस्थानं गच्छावस्तदा वरम् । मन्त्रिणोक्तम्-कथं गम्यते स्त्रपुरादिमार्गाऽपरिज्ञानात् ? ततस्तयोक्तम्-सांप्रतमावाभ्यां रत्ननन्थिद्वयं गृहीत्वा खट्वायां चोपविश्य श्वेतकरवीरकम्व्या साऽऽहन्तव्या। ततः सा चिन्तिते पुरे नेष्यति, यदि च कदाचिद्राक्षसी पृष्ठे समागच्छेत्तदा त्वया सा रक्तकरवीरकंच्या हन्तव्या, ततः सा निष्प्रभावा सती पश्चाद्यास्यति । अथैवं परस्परं विमृश्य चेलतुः, तयोश्चलनान्तरं सा राक्षसी तत्र समागता स्वस्थानं च शून्य दृष्ट्वोवाच-हा ! मुषिताऽस्मीति चिन्तयन्ती सा तयोः पृष्ठे धाविता मिलिता च । मन्त्रिणा रक्तकरवीरकंच्या निहता सती पश्चान्नित्प्रभावा स्वस्थानं जगाम। ततो यत्र गंभीरपुरपत्तने तस्य द्वे प्राक्तने भार्ये आस्तां, तस्मिन्नेव पुरे उद्यानवनमध्ये खट्वाप्रभावान्मंत्री समागात् । तत्रैव रमणीयतरवनमध्ये स्वस्त्री रत्नसुन्दरीं बहिर्मुक्त्वा स मन्त्री निवासस्थानविलोकनार्थ नगरान्तर्गतः । इतस्तन्नगरतस्तत्रैका कपटकलाकलापकुशला वेश्या समागता, तया तामतिचारुरूपां मन्त्रिस्त्रीं दृष्ट्वा चित्ते चिन्तयामास-किमियं स्वर्गाद्रुष्टाऽत्र समागता स्वर्वधूः १ वा मन्त्रसाधनसोद्यमा विद्याधरी ? विषोद्विग्ना यात्रागता. किं वा पातालकन्येयम् ? रतिरिन्द्राणी पार्वती हरिप्रिया वेति ? पुनस्तया ध्यातम्-योषाऽस्मद्गृहे समागच्छेत्तर्हि मम महत्तरं भाग्यं फलेत , पुनरंगणे गजगामिनी जगदानन्ददायिनी चारुकल्पवल्लीवाऽऽरोपिता भवेत् । अतः केनाप्युपायेनैषा ग्राह्य ति विमृश्य तत्पाखें समागत्य सा तां प्रति वदति स्म । इस तरह उसकी बात सुनकर लड़कीने कहा-मैं स्वयं ही अपने योग्य बर को दिखला देती हूं, राक्षसीने कहा-तो अभी तुमको उसे दे दूं। फिर पूर्व-संकेत से उसी समय मंत्री प्रगट हो गया, राक्षसीने भी उस लड़की के साथ गांधर्व विवाह से उस मंत्री का विवाह करा दिया। और कंगन खोलने के समय में खाट आदि (पूर्वोक्त) चार चीजें मंत्रीने राक्षसी से मांगी, राक्षसीने मंत्री को वे चारों चीजें दे दी। फिर एक समय राक्षसी क्रीड़ा आदि करने के लिए दूसरी जगह गई, तब उस लड़कीने मंत्री को कहा-हे प्राणनाथ, स्वामी, इस समय चदि हम दोनों अपने (आपके ) स्थान को चलें तो अच्छा है। मंत्रीने कहा-अपने नगर के मार्ग को नहीं जानने से किसतरहे जाया जाए। तब उस ( लड़की ) ने कहाअभी हम दोनों रत्न की दोनों गठरियों को लेकर और खाटपर बैठकर श्वेत करवीर की चाबुक से खाट को मारेंगे, तब वह जहां जाना है वहां ले जायगा। अगर चेत् कहीं राक्षसी हमारे पीछे आयगी तो तम उसे लाल करवीर की चाबुक से मारना, फिर वह निस्तेज (निर्बल ) होकर पीछे लौट जायगी, इसतरह दोनों आपस में विचार करके चल दिए। दोनों के वहां से चल देने के बाद वह राक्षसी वहां आई, अपने स्थान को सुन-सान देखकर बोली-हाय, मैं चुराई गई, इसतरह विचार करती हुई वह उन दोनों For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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