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कालिदास पर्याय कोश
3. महेन्द्र द्विप :- इन्द्र का हाथी ऐरावत ।
असौ महेन्द्र द्विपानगंधिस्त्रिमार्गगावीचिविमर्दशीतः । 13/20 ऐरावत की मद की गंध में बसा हुआ और आकाशगंगा की लहरों से ठंडाया हुआ ।
4. सुरगज :- [ सु+रा+क+गजः ] देवों का हाथी ।
मदपटुनिनदद्भिर्बोधितो राजहंसैः सुरगजइव गांगंसैकतं सुप्रतीकः 15/75 जैसे आकाशगंगा की रेती में लेटा हुआ सुप्रतीक नाम का देवताओं का हाथी, राजहंसों का शब्द सुनकर जाग उठता है।
सुरगज इव दतैर्भग्नदैत्यासिधारैर्नय इव पणबंध व्यक्त यौगैरुपायैः । 10/86 जैसे असुरों की तलवारों की धार कुण्ठित करने वाले अपने चार दांतों से ऐरावत शोभा देता है, जैसे चार उपायों से राजनीति शोभा देती है ।
5. सुरद्विप :- [ सु+रा+क + द्विपः ] देवों का हाथी ।
हरेः कुमारोऽपि कुमारविक्रमः सुरद्विपास्फालनकर्कशांगलौ । 3/55 कार्तिकेय के समान पराक्रमी रघु ने भी इन्द्र की उस बाँईं भुजा में मारा, जिसकी उँगलियाँ ऐरावत को बार-बार थपथपाने से कड़ी हो गई थीं।
क
कंटक
1. कंटक :- [ कण्ट् + ण्वुल्] काँटा, फाँस, डंक ।
उत्खात लोकत्रयकंटकेऽपि सत्यप्रतिज्ञेऽप्यविकत्थनेऽपि । 14 / 73
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यद्यपि राम तीनों लोकों का दुःख दूर करने वाले हैं, अपनी प्रतिज्ञा के पक्के हैं और अपने मुँह से अपनी बड़ाई भी नहीं करते ।
2. शंकु : - [ खङक् + उण् ] काँटा, कील, फाँस I
तस्य प्रसह्य हृदयं किल शोक शंकुः प्लक्ष प्ररोह इव सौधतलं बिभेद ।
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जैसे बड़ की जटाएँ भवन की तली को छेद कर नीचे घुस जाती हैं, वैसे ही शोक की बर्धी ने राजा के हृदय को बलपूर्वक आर-पार बेध दिया था ।
3. शल्य : - [ शल्+ यत्] काँटा, खपची ।
ब्राह्ममस्त्रं प्रिया शोक शल्य निष्कर्षणौषधम् । 12 / 97