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रघुवंश
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ऐ ऐरावत
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यह सब मेरे पूर्व जन्म के पापों का ही फल है।
5. वृजिन :- [ वृजे : इनज् कित् च] दुष्ट, पापी, पाप, पीड़ा, दुःख ।
न चावदद् भर्तृरवर्णमार्या निराकरिष्णोर्वृजिनादृतेऽपि । 14/57
वे इतनी साध्वी थीं कि निरपराध पत्नी को निकालने वाले अपने पति को उन्होंने कुछ भी बुरा-भला नहीं कहा।
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1. ऐरावत :- [ इरा आप: तद्वान् इरावान् समुद्रः तस्मादुत्पन्नः अण् ] इंद्र का हाथी, श्रेष्ठ हाथी, पूर्व दिशा का दिग्गज ।
प्रावृषेण्यं पयोवाहं विद्युदैरावताविव । 1/36
उस पर बैठे हुए वे दोनों ऐसे जान पड़ते थे, मानो वर्षा के बादल पर ऐरावत और बिजली दोनों चढ़े चले जा रहे हों ।
ऐरावतास्फालन विश्लथं यः संघट्टयन्नंगदमंगदेन । 6/73
ऐरावत को बार-बार अंकुश लगाने से इन्द्र के जो भुजबंध ढीले पड़ गए थे, वे ककुत्स्थ के भुजबंध से रगड़ खाते थे ।
क्रममाणश्चकार द्यां नागेनैरावतौजसा । 17/32
इंद्र के समान ऐश्वर्यशाली राजा अतिथि जब ऐरावत के समान बलवान हाथी पर चढ़कर अयोध्या में घूमने निकले।
2. द्विपेन्द्र : - हाथी ।
आसीदनाविष्कृत दानराजिरंतर्मदावस्थ इव द्विपेन्द्रः 1 2/7
किसी मतवाले हाथी के माथे से मद की धारा न भी निकलती हो, तो भी उसको देखते ही उसके तेज का अनुमान हो जाता है।
महोक्षतां वत्सतरं स्पशन्निव द्विपेन्द्र भवंकलभः श्रयन्निव । 3 / 32
जैसे गाय का बछड़ा बड़ा होकर सांड़ हो जाता है और हाथी का बच्चा बढ़कर गजराज हो जाता है।
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सोढुं न तत्पूर्वमवर्णमीशे आलानिकं स्थाणुमिव द्विपेन्द्रः । 14/38 जैसे हाथी अपने अलान से खीझकर उसे उखाड़ने की चेष्टा करता है, वैसे ही मैं भी इस कलंक को अब नहीं सह सकता।