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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 54 कालिदास पर्याय कोश जब वह सो गई तब ये दोनों भी सोने लगे और ज्यों ही प्रात: वह सोकर उठीं, त्यों ही इन दोनों की भी नींद टूट गई। प्रातर्येथोक्तव्रतपारणान्ते प्रास्थानिकं स्वस्त्ययनं प्रयुज्य ।। 2/70 दूसरे दिन प्रात:काल वशिष्ठ जी ने समझ लिया कि गौ की सेवा का व्रत तो पूरा हो ही गया। 6. विभात :-[वि+भा+क्त] प्रभात, पौ फटना। स्वभाविकं परगुणेन विभात वायुः सौरेभ्यमीप्सुरिव ते मुख मारुतस्य। 5/29 प्रात:काल का पवन तुम्हें जगा हुआ न देखकर, वह तुम्हारे मुख की स्वाभाविक सुगंधि को दूसरों से लेने का प्रयास कर रहा है। सेनानिवेशान्पृथिवी क्षितोऽपि जग्मुर्विभातग्रहमंदभासः।7/2 दूसरे राजा लोग भी प्रातः काल के तारों के समान अपना उदास मुँह लेकर अपने डेरों में यह कहते हुए चले गए। एनस 1. एनस :-[इ+असुन्, नुडागमः] पाप, अपराध, निन्दा। एनोनिवृत्तेन्द्रियवृत्तिरेनं जगाद भूयो जगदेकनाथः। 5/23 आप जैसे वेदपाठी ब्राह्मण गुरुदक्षिणा के लिए हमारे पास आवें और यहाँ से निराश लौटकर किसी दूसरे का द्वार झाँके, यह नहीं हो सकता। किल्विष :-[किल्+टिषच्, वुक्] पाप, अपराध, क्षति, दोष। स्वं वपुः स किल किल्विषच्छिदां रामपादरजसामनुग्रहः। 11/34 राम के चरणों की धूल सब पापों को हरने वाली थी, इसलिए उसके छूते ही उन्हें पहले वाला सुंदर शरीर मिल गया। 3. तमस् :-[तम्+असुन्] रंज, शोक, पाप, अंधकार। अशून्य तीरां मुनिसंनिवेशैस्तमोपही तमसां वगाह्य। 14/76 पाप मिटाने वाली जिस तमसा के किनारे तपस्वी लोग सदा संध्या पूजा करते हैं। पातक :-[पत्+णिच्+ण्वुल्] पाप, जुर्म। ममैव जन्मांतर पातकानां विपाकविस्फूर्जथुरप्रसाः। 14/62 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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