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कालिदास पर्याय कोश 2. अदूर :-जो दूर न हो, समीप।
अदूरवर्तिनीं सिद्धिं राजन्वि गणयात्मनः। 1/87 हे राजन्! तुम्हारा मनोरथ बहुत शीघ्र ही पूरा होगा। असौ महाकाल निकेतनस्य वसन्नदूरे किल चन्द्रमौलेः। 6/34 इनका राज-भवन महाकाल मंदिर में बैठे हुए सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
शिवजी के पास ही है। 3. उपकंठ :-[उपगतः कण्ठम्+अत्या० स०] सामीप्य, के निकट।
प्राप्त तालीवन श्याममुपकंठ महोदधेः। 4/34 उस समुद्र के किनारे पहुँचे जो तट पर खड़े हुए ताड़ के वृक्षों की छाया पड़ने से काला दिखाई पड़ रहा था। मंदाकिनी भाति नगोपकंठे मुक्तावली कंठगतेव भूमेः। 13/48 चित्रकूट पर्वत के नीच बहती हुई मंदाकिनी ऐसी जान पड़ती है, मानो पृथ्वी रूपी नयिका के गले में मोतियों की माला पड़ी हुई हो। उपांत :-[उपान्त]-किनारा, छोर, सिरा, सान्निध्य, पडौस। तयोरुपान्त स्थित सिद्धसैनिकं गुरूत्मदाशी विषभीम दर्शनैः। 3/57 ऊपर देवता और नीचे रघु के सैनिक इस अचरज भरे युद्ध को देख रहे थे। मेरोरुपान्तेष्विव वर्तमानमन्योन्य संसक्तमहस्त्रियामम्। 7/24 मानो दिन और रात का जोड़ा सुमेरू पर्वत की फेरी दे रहा हो। उपान्त वानीर बनोप गूढान्यालक्ष्य पारिप्लव सारसानि। 13/30 देखो बहुत ऊँचे से देखने के कारण और बेंत के जंगलो से ढका होने के कारण ठीक से नही दिखाई दे रहा फिर भी जल पर तैरते हुए सारस कुछ-कुछ दिखाई दे जाते हैं। उपान्त वानीर गृहाणि दृष्ट्वा शून्यानि दूये सरयूजलानि। 16/21 सरयू के तट पर बनी हई बेंत की झोपड़ियाँ भी सूनी पड़ी रहती हैं।
उषा
1. उषा :-[ओषत्यन्धकारम्-उष्+क] प्रभात काल, पौ फटना।
उषसि सर इव प्रफुल्लपद्मं कुमुदवनप्रतिपन्न निद्रामासीत्। 6/86 प्रातः काल के उस सरोवर जैसा लगने लगा जिसमें एक ओर खिले हुए कमल दिखाई दे रहे हों और दूसरी ओर मुँदे कुमुदों का झुंड खड़ा हो।
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