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रघुवंश
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तथाहि शेषेन्द्रियवृत्तिरासां सर्वात्मना चक्षुरिव प्रविष्टा। 17/12 मानों उनकी सब इन्द्रियों की शक्ति एकाएक आँखों में ही आ बसी हो। समुपास्यत पुत्र भोग्यया स्नुष्वाविकृतेन्द्रियः श्रिया। 8/14 जिस भूमि पर उनके पुत्र राज्य कर रहे थे, वह जितेन्द्रिय रघु का फल-फूल देकर उसी प्रकार सेवा कर रही थी, मानों उनकी पतोहू ही हो। इति शत्रुषु चेन्द्रियेषु च प्रतिषिद्धप्रसरेषु जाग्रतौ। 8/23_ अज ने अपने शत्रुओं का बढ़ना रोककर और रघु ने इन्द्रियों को वश मे करके अपनी-अपनी सिद्धियाँ प्राप्त की। अपिस्वेदेहात्किमुतेन्द्रियार्थाद्य शोधनानां हि यशोगरीयः। 14/35 यशस्वियों को अपना यश अपने शरीर से भी अधिक प्यारा होता है,फिर स्त्री
आदि भोग की वस्तुओं की तो बात ही क्या। 2. करण :-इन्द्रिय, प्राण। .
वपुषा करणोज्झितेन सा निपतन्ती पतिमप्यपातयात्।8/38 प्राणहीन होने से वह गिर पड़ी और उनके साथ-साथ अज भी गिर पड़े।
उत्तर
1. उत्तर :-[उद्+तरप्] उत्तर दिशा, उत्तरीय, उच्चतर।
कीर्तिस्तंभद्वयमिव गिरौ दक्षिणेचोत्तरे च। 15/103 उत्तर गिरि हिमालय पर हनुमान जी को तथा दक्षिणगिरि त्रिकूट पर विभीषण जी
को अपने दो कीर्तिस्तंभों के रूप में स्थापित करके। 2. उदीचि :-[उद्+अञ्च्+क्विन्+ङीप्] उत्तर दिशा।
शरैरुस्ौरिवोदीच्यानुद्धरिष्यन् रसानिव। 4/66 जैस सूर्य अपनी किरणों से पृथ्वी का जल खींचने के लिए उत्तर ओर घूम जाता
उपांत
1. अंतिक :-[अन्तः सामीप्यमस्यातीति-अन्त+ठन्] निकट, समीप।
रजः कणैः खुरोधूतैः स्पृशद्भिर्गात्रमंतिकात्। 1/85 उसके खुरों से उड़ी हुई धूल के लगने से राजा दिलीप वैसे ही पवित्र हो गए, जैसे किसी तीर्थ में स्नान करके लौटे हों।
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