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कालिदास पर्याय कोश
तत्र नागफणोत्क्षिप्त सिंहासन निषेदुषी । 15/83 उसमें से नाग के फण पर रक्खे हुए सिंहासन पर बैठी हुई । 2. विष्टर : - [ वि + स्तृ+अप् + षत्वम् ] आसन, तह, परत । परिचेतुमुपांशु धारणां कुश पूतं प्रवयास्तु विष्टरम् । 8 / 18 बूढ़े रघु अपने मन को साधने का अभ्यास करने के लिए अकेले में पवित्र आसन पर बैठते थे ।
तां दृष्टिविषये भर्तुर्मुनिरास्थित विष्टरः । 15 / 79
आसन पर बैठे हुए वाल्मीकि जी ने सीता जी से कहा ।
इन्दु
कुशा के
1. इन्दु :- [ उनन्ति क्लेद यति चन्द्रिकया भुवनम् - उन्द् + उ आदेरेच्चि ] चंद्रमा ।
दिलीपइति राजेन्दुरिन्दः क्षीरनिधा विव । 1 / 12
राजाओं में चन्द्रमा समान सबको सुख देने वाले राजा दिलीप ने वैसे ही जन्म लिया जैसे क्षीरसागर में चन्द्रमा ने जन्म लिया था ।
तस्याः प्रसन्नेन्दुमुखः प्रसादं गुरुर्नृपाणां मुखे निवेद्य | 2/68
निर्मल चंद्रमा के समान संदर मुख वाले राजाधिराज दिलीप जब वशिष्ठ जी के पास पहुँचे, तब उनकी प्रसन्नता को देखते ही वशिष्ठ जी सब बातें पहले से
समझ गए।
महोदधेः पूर इवेन्दुदर्शनाद् गुरुः प्रहर्षः प्रभूवनात्मनि । 3/17 जैसे चन्द्रमा को देखकर महासमुद्र में ज्वार आ जाता है, वैसे ही पुत्र को देखकर राजा को इतना अधिक आनंद हुआ कि वह उनके हृदय में समा न सका । नभसा निभृतेन्दुना तुलामुदितार्केण सामरुरोह तत् । 8/15
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जिसमें एक ओर चंद्रमा छिप रहे हों और दूसरी और सूर्य निकल रहे हों आभाति पर्यन्तवनं विदूरान्मेघान्तरालक्ष्यमिवेन्दु बिंबम् | 13 / 38 काले-कले जंगलों से घिरा हुआ दूर से ऐसा दिखाई पड़ रहा है, मानों बादलों के बीच मे कुछ-कुछ दिखाई देने वाला चंद्रमा हो ।
अतिष्ठन्मार्गमावृत्य रामस्येन्दोरिव ग्रहः । 12 / 28
जैसे चंद्रमा का मार्ग राहु रोक लेता है, वैसे ही वह भी राम का मार्ग रोककर खड़ा हो गया ।