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रघुवंश 3. तपोवन :-[तप्+असुन्+वनम्] तपोभूमि, पवित्रवन।
वधूभक्तिमती चैनामर्चितामा तपोवनात्। 1/90 तुम्हारी वधू को चाहिए कि वह नित्य प्रातः काल बड़ी भक्ति से इसकी पूजा किया करे और जब यह वन का जाने लगे तब ये तपोवन के बाड़े तक। उभावलंचक्रतुरंचिताभ्यां तपोवनावृत्तिपथं गताभ्याम्। 2/18 उन दोनों को धीरे-धीरे चलते देखकर तपोवन का मार्ग बस देखते ही बनता था। स जात कर्मण्यखिले तपस्विना तथेनादेत्य पुरोधसाकृते। 3/18 वशिष्ट जी ने जब यह समाचार पाया, तब वे भी आए और स्वभाव से ही सुंदर उस बालक के जाति कर्म आदि संस्कार किये। बद्ध पल्लव पुटांजलिदुमं दर्शनोन्मुख मृगं तपोवनम्। 11/23 उस आश्रम में वृक्ष भी अपने पत्तों की अंजली बाँधे खड़े थे और मृग भी बड़ी उत्सुकता से इन लोगों को देख रहे थे। इयेषुभूयः कुशवंति गंतुं भागीरथीतीरतपोवनानि। 14/28 मै गंगा जी के तट के उन तपोवनों को देखना चाहती हूँ, जहाँ कुश की झोपड़ियाँ चारों ओर खड़ी हैं। प्रजावती दोहदशंसिनी ते तपोवनेषु स्पृहयालुरेव। 14/45 तुम्हारी गर्भिणी भाभी तपोवन देखना चाहती ही हैं। तपस्विसंसर्ग विनीतसत्त्वे तपोवने वीतभ्यावसादस्मिन्। 14/75 देखो तपस्वियों के साथ रहते-रहते यहाँ के सब जीव बड़े सीधे हो गए हैं। इसी आश्रम में तुम भी निर्भय होकर रहो।
आसन
1. आसन :-[आस्+ल्युट्] बैठना, आसन, स्थान।
सुरेन्द्रमात्राश्रित गर्भ गौरवात्प्रयत्न मुक्तासनया गृहागतः। 3/11 जब धीरे-धीरे रानी सुदक्षिणा का वह गर्भ बढ़ने लगा, जिसमें लोकपालों के अंश भरे थे, तब उन्हें उठने-बैठने में भी कठिनाई होने लगी। नपतिः प्रकृतीरवेक्षितुं व्यवहारासनमाददे युवा। 8/18 इधर युवा राजा अज जनता के कामों की देखभाल करने के लिए न्याय के आसन पर बैठते थे।
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