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रघुवंश
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3. चामीकर :-[चमीकर + अण] सोना।
तेजोमहिम्ना पुनरावृतात्मा तद्वयाप चामीकरपिञ्जरेण। 18/40 पर उनके शरीर से जो सुवर्ण के समान तेज निकलता था, उससे वह सिंहासन
भरा सा ही जान पड़ता था। 4. जाम्बूनद :-[जम्बूनद् + अण्] सोना। निर्वृत्तजाम्बूनदपट्ट शोभे न्यस्तं ललाटे तिलकं दधानः। 18/44 सोने का पट्टा बंधे हुए अपने ललाट पर वे स्वयं तिलक लगाते थे और सदा
हँसमुख रहते थे। 5. सुवर्ण :-[सुष्ठुवर्णोऽस्य :-प्रा०ब०] सोना, सोने का सिक्का।
ततो निषङ्गादसमग्रमुद्धृत सुवर्णपङ्खातिरञ्जिताङ्गुलिम्। 3/64 तूणीर से आधे निकाले हुए उस बाण को फिर से उसमें डाल दिया, जिसके
सुनहरे पंख की चमक से रघु की उँगलियों के नख भी चमक उठे थे। 6. हिरण्य :-[हिरणमेव स्वार्थे यत्] सोना।
स मृण्मये वीतहिरण्मयत्वात्पात्रे निधायार्थ्यमनर्धशीलः। 5/2 यशस्वी रघु मिट्टी का पात्र लेकर विद्वान अतिथि की पूजा करने चले क्योंकि सोने-चाँदी के पात्र तो उन्होंने सब दान ही कर डाले थे। हिरण्मयीं कोशगृहस्य मध्ये वृष्टिं शशंसुः पतितां नभस्तः। 5/29 रक्षकों ने आकर यह अचरज-भरा समाचार दिया कि कोश में बहुत देर तक
सोने की वर्षा होती रही है। 7. हेम :-[हि + मनिन्] सोना।
हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः श्यामिकापि वा। 1/10 क्योंकि सोने का खरापन या खोटापन आग में डालने पर ही जाना जाता है। तं भूपतिर्भासुर हेमराशिं लब्धं कुबेरादभियास्यमानात्। 5/30 रघु की चढ़ाई की बात कान में पड़ते ही कुबेर ने रात को ही सोने की वर्षा कर
दी।
तिर्यग्वि संसर्पिनखप्रभेण पादेन हैमं विलिलेख पीठम्। 6/15 पैर के नखों की तिरक्षी चमक डालते हुए पैर की उँगलियों से सोने के पाँव-पीढ़े पर कुछ लिखने लगा।
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