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कालिदास पर्याय कोश
राम ने उन राक्षसों और वानरों के सेनापतियों को विदा किया, जिनकी चलते समय सीताजी ने स्वयं अपने हाथों से पूजा की। आनन्दयित्री परिणेतुरासीदनक्षरव्यञ्जित दोहदेन। 14 / 26 सीताजी के गर्भ के लक्षणों को देखकर राम बड़े प्रसन्न हुए ।
स्वमूर्ति लाभ प्रकृतिं धरित्रीं लतेव सीता सहसा जगाम। 14/54 जैसे लता सूखकर पृथ्वी पर गिर पड़ती है, वैसे ही सीता जी भी अपनी माँ पृथ्वी की गोद में गिर पड़ीं।
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सीता तमुत्थाप्य जगाद वाक्यं प्रीतास्मि ते सौम्य चिराय जीव । 14/59 सीताजी उठीं और लक्ष्मण से बोलीं :- हे सौम्य ! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, तुम बहुत दिनों तक जियो ।
तमश्रु नेत्रावरणं प्रमुज्य सीता विलापाद्विरता ववन्दे । 14 / 71
उन्हें देखकर सीताजी ने आँसू पोंछकर, चुपचाप उन्हें प्रणाम किया।
शशंस सीतापरिदेवनान्तमनुष्ठितं शासनमग्रजाय । 14 / 83 सीताजी ने रो-रोकर जो बातें कही थीं, लक्ष्मण जी ने राम से यह सोचकर कह
दीं ।
सीतां हित्वा दशमुखरिपुर्नोपयेमे यदन्यां तस्या एव प्रति कृतिसखो यत्क्रतूना
जहार। 14/87
राम ने सीता को त्यागकर किसी दूसरी स्त्री से विवाह नहीं किया, वरन अश्वमेध यज्ञ करते समय उन्होंने सीताजी की सोने की मूर्ति को ही, अपने बाएँ बैठाया
था।
कृत सीता परित्यागः स रत्नाकर मेखलाम् । 15/1
सीताजी को छोड़ देने पर, राम जी ने केवल समुद्रों से घिरी हुई पृथ्वी का ही भोग किया।
रामं सीतापरित्यागाद सामान्य पतिं भुवः । 15/39
सीताजी को छोड़ देने पर अब राम एक मात्र पृथ्वी के ही स्वामी रह गए हैं।
कविः कारुणिको वव्रे सीतायाः संपरिग्रहम् । 15 / 71
दयालु ऋषि ने राम से कहा, कि सीताजी को स्वीकार कर लो।
स्वर संस्कार वत्यासौ पुत्राभ्यामथ सीतया । 15/76
पुत्रों के साथ राम के पास जाती हुई सीताजी ऐसी लगती थीं, मानो स्वर और संस्कार के साथ गायत्री सूर्य के पास जा रही हों ।
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