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रघुवंश
11. सीता : - [ सि + त पृषो० दीर्घः] मिथिला के राजा जनक की पुत्री का नाम,
राम की पत्नी का नाम ।
स सीतालक्ष्मण सखः सत्याद्गुरुमलोपयन् । 12/9
अपने पिता के वचन सत्य करने के लिए वे सीता और लक्ष्मण के साथ केवल ।
कदाचिदङ्के सीतायाः शिश्ये किंचिदिव श्रमात्। 12/21
एक बार वे थके हुए सीताजी की गोद में सिर रखे।
सा सीता संनिधावेव तं वव्रे कथितान्वया । 12 / 33
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पहले तो उसने अपने कुल का परिचय दिया और फिर सीता जी के सामने ही कहने लगी ।
निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे । 12/44
इन्हें तो हम अकेले ही अपने धनुष से जीत लेंगे, यह सोचकर उन्होंने सीता की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंप दिया।
जहार सीतां पक्षीन्द्रप्रयासक्षणविघ्नितः । 12 / 53
सीताजी को चुरा कर लंका ले गया, मार्ग में गृद्धराज जटायु उससे लड़ा भी पर वह कुछ न कर सका ।
तौ सीतान्वेषिणौ गृध्रं लून पक्षमपश्यताम् । 12 / 54
राम और लक्ष्मण अब सीता को ढूँढ़ने लगे, उन्होंने मार्ग में पंख कटे हुए जटायु को देखा।
निर्वाप्य प्रियसंदेशैः सीतामक्षवधोद्धतः । 12/63
पहले तो उन्होंने रामजी का प्यार भरा संदेश सुनाकर सीताजी को ढाढ़स बँधाया ।
सीतां मायेति शंसन्ती त्रिजटा समजीवयत् । 12 / 74
पर जब त्रिजटा ने सीता जी को समझाया कि यह सब राक्षसी माया है, तब सीताजी की जान में जान आई।
तस्य स्फुरति पौलस्त्यः सीता संगमशंसिनि । 12/90
जो फड़कती हुई शुभ सूचना दे रही थी, कि अब सीताजी के प्राप्त होने में देर नहीं है, उस भुजा में रावण ने ।
क्लेशावहा भर्तुरलक्षणाहं सीतेति नाम स्वमुदीरयन्ती । 14/5 "मैं ही पति को कष्ट देने वाली कुलक्षणा सीता हूँ" - यह कहते हुए । सीतास्वहस्तोपहृता यपूजान् रक्षः कपीन्द्रान्विससर्ज रामः । 14/19
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