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रघुवंश
पृथ्वी पर इतना रक्त बहा कि नीचे की धूल दब गई और जो धूल उठ चुकी थी,
वह वायु के सहारे इधर-उधर फैलकर। 2. रक्त :-[रञ्ज करणे क्तः] रुधिर।
वीक्ष्य वेदियथ रक्तबिन्दुभिर्बन्धुजीवपृथुभिः प्रदूषिताम्। 11/25 इतने में ही यज्ञ की वेदी पर बन्धुजीव के फूल के समान बड़ी-बड़ी रक्त की बूंदे
देखकर ऋषियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। 3. रुधिर :-[रुध् + किरच्] लहू, रक्त।
शस्त्रक्षताश्वद्विपवीरजन्मा बालारुणोऽभूदुधिर प्रवाहः। 7/42 शस्त्रों से घायल घोड़ों, हाथियों और योद्धाओं के शरीर से निकला हुआ लहू प्रातः काल के सूर्य की लाली जैसा लगने लगा। दिनकराभिमुखा रणरेणवो रुरुधिरे रुधिरेण सुरद्विषाम्। 9/23 कई बार सूर्य पर छाई हुई युद्ध की धूल राक्षसों के रक्त से सींचकर दबाई है। आयुर्वेहातिगैः पीतं रुधिरं तु पतत्रिभिः। 12/48 बाण तो उनकी आयु पीने के लिए गए थे, उनका रक्त तो पिया पक्षियों ने। शोणित :-[शोण + इतच्] लाल, लोहित, रुधिर। उपस्थिता शोणितपारणा मे सुरद्विषश्चान्द्रमसी सुधेव। 2/39 जैसे चन्द्रमा का अमृत राहु को मिलता है, वैसे ही मेरे रक्त के पीने के समय पर यह गौ आ गई है। पपावनास्वादितपूर्वमाशुगः कुतूहलेनेव मनुष्यशोणितम्। 3/54 वहाँ का रक्त बड़े चाव से पिया, क्योंकि उसे अभी तक मनुष्य के रक्त का स्वाद तो मिला ही नहीं था। रणक्षितिः शोणितमहाकुल्या रराज मृत्योरिव पानभूमिः। 7/49 वह युद्ध क्षेत्र मृत्युदेव के उस मदिरालय सा जान पड़ा, जिसमें बहता हुआ रक्त ही मानो मदिरा हो। क्षत्रशोणितपितृक्रियोचितं चोदयन्त्य इव भार्गवं शिवाः। 11/61 मानो क्षत्रियों के रक्त से अपने पिता का तर्पण करने वाले परशुरामजी को वे पुकार रही हों। अमर्षणः शोणित काश्या किं यदा स्पृशन्तं दशति द्विजिह्वः। 14/41 क्योंकि जब साँप पैर के नीचे दब जाता है, तब वह रक्त के लोभ से थोड़े ही डसता है, वह तो बदला लेने के लिए ही डसता है।
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