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कालिदास पर्याय कोश तेन शैल गुरुमप्यपातयत्पांडुपत्रमिव ताडकासुतम्। 11/28 उन्होंने पर्वत से भी बड़े ताड़का के पुत्र मारीच को उस बाण से उड़ाकर वैसे ही दूर फेंक दिया, जैसे कोई सूखा पत्ता उड़ा दिया हो। शैलसारमपि नातियलतः पुष्पचापमिव पेशलं स्मरः। 11/45 राम ने उस पर्वत के समान भारी धनुष पर वैसी ही सरलता से डोरी चढ़ा दी, जैसे कामदेव अपने फूलों के धनुष पर डोरी चढ़ाता है। अतिशस्त्रनखन्यासः शैलरुग्णमतंगजः। 12/73 अपने नखों से ऐसे भयंकर घाव करते थे कि शस्त्रों से भी वैसे घाव नहीं हो सकते थे और लड़ाकू हाथियों के सिरों पर बड़ी चट्टानें पटक पटककर उनका कचूमर निकाल देते थे। तेषु क्षरत्सु बहुधा मदवारिधारा: शैलाधिरोहणसुखान्युपलेभिरेते। 13/74 उन हाथियों के मस्तक से मद की धारा बह रही थी, इसलिए सैंड की ओर से चढ़ते समय उनको वही आनंद मिला, मानो झरनों वाले पहाड़ों पर ही चढ़ रहे
हों।
सा केतुमालोपवना बृहद्भिर्विहार शैलानुगतेव नागैः। 16/26 सेना का ध्वजा वाला भाग लता वाले उपवनों जैसे लग रहा था, बड़े-बड़े हाथी
बनावटी पर्वतों जैसे जान पड़ते थे। 11. श्रृंगी :-[शृङ्ग + इनि] पहाड़, चोटी वाला।
रुरोध रामं शृङ्गीव टङ्कच्छिन्नमनः शिलः। 12/80 वह राम का मार्ग रोककर उसी प्रकार खड़ा हो गया, जैसे टाँगी से कटी हुई कोई
मैनसिल की चट्टान आ गिरी हो। 12. सानुमता :-(पुं०) [सानु + मतुप्] पहाड़।
दुम सानुमतां किमन्तरं यदि वायौ द्वितयेऽपि ते चलाः। 8/90 यदि पर्वत भी वृक्ष की भाँति आँधी से हिल उठेगा, तो उन दोनों में अंतर ही क्या
शोणित 1. क्षतज :-[क्षण् + क्त + जम्] रुधिर् पीप, मवाद।
सच्छिन्नमूलः क्षतजेन रेणुस्तस्योपरिष्टात्पवनावधूतः। 7/43
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