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कालिदास पर्याय कोश 26. वासव :-[वसुरेव स्वार्थे अण, वसूनि सन्त्यस्य अण् वा] इन्द्र का नाम ।
शशाक निर्वापयितुं न वासवः स्वतश्च्युतं वह्नि मिवाद्भिरम्बुदः। 3/58 जैसे बादल घोर वर्षा करके भी अपने हृदय में उत्पन्न बिजली को नहीं बुझा सकता, वैसे ही इन्द्र भी रघु को हरा न सके। अवेहि मां प्रीतमृते तुरंगमात्किमिच्छसीति स्फुटमाह वासवः। 3/63 इन्द्र ने कहा :-मैं तुम्हारी वीरता पर प्रसन्न हूँ, तुम इस घोड़े को छोड़कर और जो कुछ माँगना चाहो, माँग लो। कायेन वाचा मनसापि शश्वद्यत्संभृतं वासवधैर्यलोपि। 5/5 उन्होंने शरीर, मन और वचन तीनों प्रकार का जो कठिन तप करना प्रारंभ किया था और जिसे देखकर इन्द्र भी घबरा उठे थे। कारागहे निर्जितवासवेन लड़ेश्वरेणोषितमाप्रसादात्। 6/40 जिस रावण ने इन्द्र को भी जीत लिया था, उसको भी उन्होंने अपने कारागार में बंदी रख छोड़ा था। न कृपणा प्रभवत्यपि वासवे न वितथा परिहासकथास्वपि। 9/8 वे इतने मनस्वी थे कि इन्द्र तक के आगे वे कभी नहीं गिड़गिड़ाए, हँसी में भी उन्होंने झूठ नहीं बोला। येषु दीर्घतपसः परिग्रहो वासवक्षणकलत्रतां ययौ। 11/33 जहाँ महातपस्वी गौतम की स्त्री अहल्या, थोड़ी देर के लिए इन्द्र की पत्नी बन गई थीं। तौ समेत्य समये स्थिता वुभौ भूपती वरुणवासवोपमौ। 11/53 वरुण और इन्द्र के समान उन दोनों प्रतापी राजाओं ने मिलकर शास्त्र की विधि
27. वृषा :-[वृष + कनिन् । वृष + क] इन्द्र का नाम।
वृषेव पयसां सारमाविष्कृतमुदन्वता। 10/52 जैसे इन्द्र ने समुद्र में से निकले हुए अमृत के कलश को थाम लिया था, वैसे ही राजा दशरथ ने खीर ले ली। वृषेव देवो देवानां राज्ञां राजा बभूव सः। 17/77
जैसे इन्द्र देवताओं के देवता हैं, वैसे ही वे भी राजाओं के राजा हो गए। 28. वृत्रहा :-[वृत् + रक् + हन्] इन्द्र का विशेषण।
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